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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी एकता में से अनेकता के रास्ते पर चले गये. बात तो हम एकता की करते हैं पर हमारे जीवन में आप झांककर देखिये तो एकता का दर्शन हमारे व्यवहार से नहीं मिलता. हर व्यक्ति अपना साइन बोर्ड लगाना पसन्द करता है. अपनी अन्तर्वासना से ग्रसित है, इसीलिए परमात्मा की वाणी को उसने विकृत रूप में जगत के समक्ष रखा. जिन आत्माओं ने परमात्मा की वाणी के साथ इस प्रकार का व्यवहार किया, जगत के वे प्रथम कोटि के अपराधी हैं. परमात्मा के वे गुनहगार हैं. सही तरीके से जो वस्तु रखनी थी, उसे विकृत रूप से रखा गया. असत्य को सत्य का रूप दिया गया, सत्य की पैकिंग के अन्दर असत्य का माल आप तक पहुँचाया गया और सांमप्रदायिक दुर्भावना उत्पन्न कर दी. परमात्मा के द्वार पर जहां जगत की सभी आत्माओं को प्रवेश मिला, वहां उस विकृति का परिणाम यह कि परमात्मा के द्वार पर प्रवेश पाने से पहले ही दीवार खड़ी कर दी गई. हर व्यक्ति को ऐसा नशा दे दिया गया, वह यही समझता है कि मैं ही पूर्ण हूँ, मेरे वचन के द्वारा ही मुझे पूर्णता मिलेगी. इस प्रकार सारे जीवन व्यवहार को हमने दूषित कर दिया. जहां अमृत देना था, वहां हमने जहर देना शुरू कर दिया. परमात्मा की वाणी का अमृतपान करने से जहां आत्मा निर्मल बनती है, वहां यह जहरीला तत्व मिलने से सांप्रदायिक दुर्भावना के कारण, उस व्यक्तिगत अनुराग के कारण, दृष्टि राग के कारण, हमारा जीवन इतना विकृत आज बन चुका है. कभी परमात्मा ने व्यक्ति को महत्व नहीं दिया. यहां तो गुणों को महत्व दिया गया है. अनेक आचार्य साध आयेंगे, अगर आप व्यक्तिगत किसी का अनुराग रखते हैं तो निश्चित आप का पतन होने वाला हैं. परमात्मा ने दृष्टि राग को जहर माना है. किसी भी एक सम्प्रदाय का दृष्टिराग, किसी व्यक्ति का दृष्टि राग, व्यक्ति को पतन की तरफ ले जाता है. __कभी भूल कर भी इस जहर को लेने का प्रयास न करें. अपनी आत्मा को निर्मल रखें. हमारे यहां तो गुणी को अभिवादित किया गया है. अभिनंदित किया गया है गणों का अनुराग पैदा करने के लिए. परमात्मा ने कहा-जहाँ संप्रभुता का दर्शन हो, जहां गुणों का दर्शन हो, वहां अपना जीवन नतमस्तक होना चाहिए. गुणों को प्राप्त करने के लिए प्रयास होना चाहिए, सम्यक् गुणों का अनुमोदन होना चाहिए. हम व्यक्तिगत राग के अन्दर दूसरों की उपेक्षा न करें. नवकार महामन्त्र विश्व का. सबसे बड़ा राष्ट्र मन्त्र है. परमात्मा महावीर का सबसे बड़ा महा उपकार इस शासन पर है. सारे जगत को उन्होंने प्रेम और मैत्री का सन्देश दिया. सर्वोपरि उपकार नवकार में है, कहीं नाम है किसी भी तीर्थंकर का? एक भी तीर्थंकर का नाम नवकार महामन्त्र में नहीं, यह विशेषता है. जैन दर्शन की यह उदारता है, जैन दर्शन की यह विशालता है. 428 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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