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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी ये तो शास्त्रों के सिद्धान्त हैं, मर्यादा मिश्रित. परमात्मा ने ज्ञान चक्षु से देखकर के कहा है. हमारे उपकार के लिए कहा है, श्रद्वा पूर्वक धर्म क्रिया करनी है. श्रद्धा आगे चलकर के फलीभूत बनती है. समय बहुत हो गया है. गत शनिवार मुझसे एक भूल हो गई, उनका मिच्छामि दुक्कडम्. धनुष का परिणाम मैंने ढाई हाथ कहा, जो चार हाथ का होता है. छदमस्थ है. क्षपोपशम में नही आया भूल हो गई. प्रमाद वश अगर कभी जिनाज्ञा से विरुद्ध कहा गया हो, इसीलिए साधु ने कहा बार-बार मिच्छामि दुक्कड़म्. कोई शब्द जिनाज्ञा विरुद्ध यदि भूल से भी बोल दिया हो, प्रमाद से बोल दिया हो, बिना जानकारी के बोल दिया हो तो, हमारा आचार है. उसके लिए-मिच्छामि दुक्कडम. मेरा आशय ऐसा नहीं था. इस प्रकार का धनुष था प्रमाण परमात्मा की अवगाहना के लिए, पांच सौ धनुष की काया देव परमात्मा की थी. इसे समझ कर सुधार लेना. "सर्वमंगलमागल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम्" पर्व वो है, जो जीवन को प्रकाशित करे. ऐसे पर्यों से प्रेरणा मिलती है. इसीलिए उनका आयोजन मात्र औपाचिरक नहीं होना चाहिए. जीवन की वास्तविकता को मद्दे नजर रखकर पवित्र पर्वो की इस प्रकार उपासना कीजिये कि वे अपनी भीतरी वासनाओं को नष्ट करने में सहायक बनें - 426 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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