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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी ऐसी ताकत है. कि ऐसे जीव जन्तु बाहर आने का साहस नहीं करते, उडते भी नहीं. हिंसा के कारण से. शारीरिक कारणों से, मानसिक शान्ति के लिए, कई कारणों से रात्रि भोजन का निषेध किया है. यह लाइट भी ऐसी होती है. कि आप समझते हैं जीव जन्तु नहीं आते हैं बाहर लैम्प पोस्ट में बरसात में देखिये, देर लगती है? इतने पीछे पतंगें पड़ जाते है. घर में कदाचित् बड़े जीव न आ जाएं, कई ऐसे सूक्ष्म जीव हैं, जो आपके घर में भी नजर आएंगे आप नहीं रोक पाएंगे. इसीलिए रात्रि भोजन का निषेध किया है. एक और प्रश्न-पूर्व भद्र के विषय में भी है. इस पर काफी वचन चाहिए सिद्ध करने के लिए वक्त कम है. इस विषय में जिज्ञासा प्रकट की कि इस विषय में जानने योग्य कोई ग्रन्थ है. जैन भूगोल के विषय में भी है. हमारे यहां प्रकाश है. संग्रहण सूत्र है. जो बहुत विस्तार पूर्वक जैन भूगोल द्वारा विश्व का परिपूर्ण परिचय दिया. पूरे जो ज्यों तप मण्डल का परिचय आपको मिलेगा साथ में जो जिज्ञासा है उसका भी उत्तर मिल जाएगा. प्रश्न-मुख वास्त्रिका रखने का प्रयोजन क्या है? इसे बांधना या हाथ में रखना अलग-अलग परम्पराएं हैं. अलग-अलग सम्प्रदाय के अलग-अलग दृष्टि कोण हैं. इसका आशय पूछा है, क्या है? पहले के समय में बड़े बड़े हाथ के लिखे ताड़ पत्रि ग्रंथ होते थे, बार-बार सूत्र पढ़ना पड़ता था. उसे दोनों हाथ से ही उठाना पड़ता था, मुंह का थूक उसमें न गिरे ज्ञान की अविनय या आसातना न हो जाए, ग्रन्थ नष्ट न हो जाए इसीलिए व्यवस्था थी कि मुंह पर कपड़ा बांध लेते. ताकि ग्रन्थ को थूक न लगे. सरस्वती की आसातना न हो. हमारी परम्परा में भी बांधते थे. हमारे गुरुजन भी बाधते थे. अड़तालिस मिनट बांध कर खोल देते थे. कि जीवोत्पत्ति न हो जाए. क्योकि जो थूक है. वह अड़तालिस मिनट से ज्यादा रहा तो इन्द्रिय जीव उसमें पैदा होंगे. जीव की विराधना होगी. इसीलिए सतत मुंह पर बांधने का हमारे यहां निषेध किया, हाथ में रखना ताकि बोलते समय उस आत्मा को यह विवेक रहे कि मैं साधु हूं ___ मुखवस्त्रिका सावधान करती है. बोलने से पहले बहुत सोचकर बोलना. जीव की यातना का पालना लिया जाता है. बहुत सूक्ष्म जीव होते हैं जो हलचल की क्रिया करते हैं. उनकी यातना के लिए रखा गया. ग्रंथ के अन्दर अपना थूक न गिर जाए. उसकी आसातना न हो जाए, बहुमान की दृष्टि से रखा गया. यह हमारी परम्परा है. इसके पीछे और कोई आशय नहीं, प्रतिक्रमण का विषय जब मैं समझाऊंगा, यह मुखवस्त्रिका जब प्रतिक्रमण में खोल कर प्रतिलेखन पचास बोल होते हैं, कहां किस प्रकार प्रतिलेखन करना, मैं समझाऊंगा. ला 425 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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