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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: चैम्बर में भेज करके न जाने कितने निर्दोष बच्चों को, परिवार को खत्म कर दिया. यह कोई दण्ड नही है, यह तो मर्यादा का उल्लंघन है. इस तरह की रक्षा की भावना. दुष्टों को इसलिए शिक्षा दी जाती है कि गलत कार्य आगे नहीं बढ़े, वहीं रुक जाए. अन्दर से शुद्ध होता है. व्यक्ति के प्रति द्वेष या घृणा की भावना नहीं रहती, पापियों का तिरस्कार नहीं करते. पाप के तिरस्कार के लिए, पाप से आत्माओं को प्रेरणा न मिले, इसी का प्रतिकार करने के लिए सजा दी जाती है. ताकि दूसरे व्यक्ति भूल करते समय विचार कर सकें. क्लास में बच्चे पढ़ते हैं यदि एक बच्चा तफान करता है. अध्यापक मारता है ताकि दूसरे बच्चों का रक्षण हो जाए, यह भाव क्षमा है. दूसरे व्यक्ति गलत कार्य न करें और दूसरे बच्चे इस बच्चे की सोहबत से न बिगड़ें. इस प्रकार राजा भी प्रजा के रक्षण के लिए दण्ड व्यवस्था का उपयोग करता है. परन्तु उसकी मर्यादा है. मर्यादा का उल्लघंन नहीं किया जाता. तीसरा प्रश्न है कि जैन मन्त्रों में रात्रि भोजन का निषेध किया गया है? भगवान के समय तो आज की तरह लाइट थी नहीं. दीपक का प्रकाश था. हो सकता है दीपक के प्रकार में कीट पतंग आए हों और भोजन के साथ पेट में जाएं, इस कारण निषेध किया गया है. यह निषेध एक अपेक्षा से नहीं. पहले ही दिन रात्रि भोजन पर मैंने प्रवचन दिया था. उसकी अपेक्षाओं को मैंने आपको समझाया था. एक दृष्टिकोण नहीं है. परमात्मा का उद्देश्य त्रिकाल अबाधित होता है. त्रिकाल अबाधितका मतलब भूत, भावी और वर्तमान की अपेक्षा से दिया जाता है. तीनों समय, तीनों काल प्रवचन का कायदा लागू रहता है.. भगवान ने अपना वर्तमान काल भी ज्ञान से देखा था, वे जानते थे भविष्य के अन्दर किस प्रकार भौतिक विज्ञान उन्नति करेगा. भौतिक साधन बनेगा. परमात्मा का सारा ही प्रवचन, आध्यातमिक भूमिका पर होता है. उसके अन्दर भौतिक दृष्टि नहीं होती. भौतिक परिचय भी वैराग्य के लिए दिया जाता है. वह भी आध्यात्मिक प्रेरणा के लिए दिया जाता है. भौतिक वासना से विरक्ति के लिए उनका भौतिक परिचय होता है. परमात्मा तो ज्ञान चक्षु से वर्तमान काल को भी जानते थे, आपके भविष्य को भी देखा फिर निषेध किया. निषेध के पीछे कारण है. ऐसे भी सूक्ष्म जीव जन्तु हैं. जो चरम चक्षु ग्रहण नहीं. सूर्य की रोशनी जाने के बाद, सूर्यास्त होने के बाद वे अपना ध्यान छोड़ते हैं. परिभ्रमण करते हैं. भोजन से आकर्षित होकर आहार के साथ मिलकर आपके पेट में जाते हैं. इसके अन्दर अल्ट्रा वाएलेट किरण होती है. उस किरण में वह ताकत है कि सूक्ष्म जीव जन्तु इस प्रकाश में बाहर नहीं आते. जैसे ही सूर्य की रोशनी व्यापक बन जाए 424 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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