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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी इसका उचित समाधान तो प्रतिवर्ष आप को मिल जाता है, कल्प सूत्र के अन्दर इसका बड़ा सुन्दर आलेख है. आज तक कभी ऐसा नहीं पहले ख्याल में ही समाधान आ जाएगा.. कल्प सूत्र का पहला प्रवचन. आज तक कभी ऐसा हुआ नहीं, अनादि अनंतकाल में कभी ऐसा होता नहीं, भविष्य में होने वाला नहीं, इसलिए इस कर्म को आश्चर्य के रूप में माना, एक प्रकृति के विरुद्ध कार्य हुआ, आज तक कोई इस विषय में स्पष्टीकरण कर नहीं पाया. न इसका कोई समाधान है. आचार्य के रूप में हमारे शास्त्रकारों ने इसको माना है. आप के प्रश्न का यही उत्तर कि ऐसा होता नहीं, होने वाला नहीं और हुआ भी नहीं, परन्तु हो गया एक आश्चर्य है, इस काल की चौबीसी में दस अच्छेरे हुए. अच्छेरे का मतलबःआश्चर्य, कभी ऐसा होता नहीं, यह तो प्राकृतिक व्यवस्था है. परन्तु प्रकृति के कार्यसे विरुद्ध जो कार्य हुआ, उसको आश्चर्य के रूप में माना गया, यह कल्प सूत्र आज सुनेंगे, उसमें दस इस प्रकार के आश्चर्य है, पर्युषण में सुनने को मिल जाएगा. इस प्रश्न का दूसरा उत्तर हमारे पास नहीं. हमारे पूर्वाचार्यों ने आश्चर्य के रूप में इसको माना है. __ यहां उनका एक प्रश्न है-पूर्व काल के अन्दर परमात्मा महावीर के जीव ने जब वे वसदेव थे उस समय अपने सेवक के कान में कील ठोंका, ऐसा उल्लेख आता है, भगवान के जीवन के इतिहास में. इनका प्रश्न है-राजा है, राजा को दण्ड देना यह अधिकार क्षेत्र की बात है, उन्होंने उसको वास्तविक दण्ड दिया कि उसने उनकी आज्ञा का अनादर किया, आज्ञा का अनादर करने का परिणाम वसुदेव ने शिक्षा दी. भगवान मायावी का जीव उस भव में वसुदेव था. वसुदेव के भव में उन्होंने इस प्रकार की शिक्षा दी. शिक्षा की मर्यादा होती है, मक्खी मारकर के आऊं और आप मुझे फांसी की सजा दें, तो यह क्या दण्ड कहलाएगा? उस व्यक्ति ने सामान्य रूप से कोई भूलकर दी, वह सामान्य प्रकार की भूल थी भगवान के उस जीव ने इतना ही. कहा-मै जब सो जाऊं, ये संगीत बन्द कर देना. ध्यान रहा नहीं और उसे आनंद आ गया, संगीत में मग्न बन गया, ध्यान से बात चली गई. उसकी सजा के रूप में प्राणान्त कष्ट देना, कान के अन्दर गर्म-2 शीशा पिघलाकर डालना, यह क्या न्याय है? राजा तो. न्यायवान होता है. इस प्रकार का अन्याय पूर्वक दण्ड दे दे तो सजा कर्म की मिलेगी. वह चाहे महावीर हों या कोई हो. कर्म में शर्म नहीं होती. वह निरपेक्ष होता है. वह चेहरा देखकर तो आता नहीं, कर्म तो कार्य देखकर आता है. भगवान के जीव ने यह गलत काम किया, महावीर को इस प्रकार की शिक्षा मिली, कान में कील ठोके गए. राजा अपने राज्य के संचालन में प्रजा के रक्षण के लिए यदि कोई भी शुभ कार्य करते हैं, और दुष्ट व्यक्तियों को उचित शिक्षा देते हैं, वहां तक तो कर्तव्य की परिभाषा में आ जाता है. यदि उससे अलग मर्यादा का उल्लंघन करके सजा दे, तब तो गलत होगा, तब तो हिटलर को भी माफ कर देना चाहिए. पचास यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया. गैस ना 423 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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