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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - द्वारा गाई जाती है. यह ऐतिहासिक मंदिरों के रक्षण के लिए उनके जीर्णोद्धार के लिए पैसे का उपयोग किया जाता है. सरकार को यह जवाबदारी दे दी जाए तो एक वर्ष में ट्रेजरी खाली हो जाए. अरबों रुपये की सम्पति चाहिए. कहां से लायें, सरकार को यदि सुपूर्द कर दिया जाए तो बिल पास होते-होते हमारे मंदिर गिर जाएंगे. हजार वर्ष के हमारे मंदिर टिके हैं. ये हमारी सामाजिक परम्परा के हैं. वह बोली और चढ़ावे के पैसे इनके काम में लगते हैं. एक भव का जीर्णोद्धार कराया गया. 170 लाख रूपये लगे. वह भी आज से 30 साल पहले एक रणकपुर के मंदिर का रिपेरिगं हुआ. जो मंदिर एक सौ करोड़ रुपये के खर्च से बनाया गया. - हमारे पूर्वजों ने क्या भाग दिया. एक ही व्यक्ति ने बनवाया और उनके जीर्णोद्धार पर 78 लाख रुपये खर्च हुआ. अब आप विचार कर लीजिए दो चार करोड़ रुपया तो 10 वर्षों में खर्च हो गया. अगर बार-बार आपसे मांगने आएं तो आपका चेहरा कैसे उतरे. आप तो यही कहेंगे कि दूसरा घर नहीं देखा. यही घर देखा है. हर तीसरे दिन चन्दा. तुम्हारे लिए पैसा कमाता हूं. महाराज को और कुछ नहीं दिखता मेरा पोकेट नजर आता है. यहीं अगर शुरू कर दें तो तीसरे दिन एक भी व्यक्ति यहां नहीं आए. हमारे पूर्वजों को धन्यवाद दो कि ऐसी सुन्दर परम्परा रखी. इस नियमित विधि से धनवान व्यक्ति पैसा पुण्य कार्य में लगा देता है. उनको उत्साह मिलता है कि निमित्त कार्य मिलता है. इसी आशय से बोलियों की परम्परा रखी है. दूसरा कोई कारण नहीं. पैसा अच्छे कार्य में आ जाए, समाज की व्यवस्था बनी रहे. अनुशासन बना रहे, उन व्यक्तियों की भावना भी प्रतिक्रमण में सूत्र यदि साधु बोले तो साधुओं के सूत्र साधु बोलते हैं. अपना प्रतिक्रमण गृहस्थ के द्वारा हम कराते नहीं. हमारे प्रतिक्रमण की सारी क्रिया साधु की क्रिया है जिन्हें साधु ही बोलते है पूरा प्रतिक्रमण. साधु को आदेश दिया जाता है, साधु की हाजिरी में कोई गृहस्थ नहीं बोलता. गृहस्थ के जो सूत्र, सात लाख पृथ्वी कार्य, यहतो प्रतिपात, तो मेरी कौन सी दुकानदारी चलती है? किसका मिच्छामि दुक्कड़म दूं? मैने कौन सा शादी विवाह करवाया, उसे तो गृहस्थ ही लेगा, साधु कैसे बोलेंगे. पाप आप करो, मिच्छामि दुक्कड़म मैं दूं. इसी तरह प्रतिक्रमण में वंदिता सत्र श्रावक का अतिचार है, तो श्रावक के अधिकार की बात है वही श्रावक बोलते हैं बाकी तो सभी सूत्र साधु स्वयं अपने मुख से बोलते हैं.. प्रश्न कर्ता के मन का समाधान हो गया होगा. मैंने बिल्कुल स्पष्ट करके आप को कहा. एक विचारवान प्रश्न विचारवान व्यक्ति का एक प्रश्न है. धार्मिक कर्म ग्रन्थि की दृष्टि से सम्पूर्ण धौतिकर्म का जिस व्यक्ति ने नाश कर दिया हो, ऐसे तीर्थंकर परमात्मा उनको उपसर्ग कैसे आ गया. यानि परमात्मा महावीर जब सर्वाश्रय बन गए, सारे कर्म उनके क्षय हो गए. फिर कौन सा कर्म ऐसा रहा जिसके उदय में परमात्मा को गौशाला ने तेज लेश्या फेंकी. 422 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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