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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी एक बहुत बड़ी प्रार्थना द्धि की क्रिया है. साथ एक और प्रश्न था-संवत्सरी जैसा प्रतिक्रमण आए, यह हमारी एक बहुत बड़ी प्रार्थना है, जैसे परमात्मा में प्रतिक्रमण आत्म शुद्धि की क्रिया है. साध्य की क्रिया है. जैसे मुसलमान नमाज पढ़ते हैं, हिन्दु परम्परा में सध्या की क्रिया होती है. इसी तरह से जैन परम्परा में उसे प्रतिक्रमण कहा जाता है. पाप के पीछे हटने की मंगल क्रिया. उसके अन्दर जो बोली, बोली जाती है. वह एक व्यवस्था के लिए है. हजार आदमी बैठे हैं. प्रतिक्रमण की मंगल क्रिया में किसे आदेश किया जाए. उसकी व्यवस्था कैसे कर रहे हैं. हमारे पूर्वजों ने एक परम्परा रख दी-दो पैसा की आवक होगी. किसी के पास वैसे मांगने जाए. विचार करना पड़ता है, की आवक होगी. सहज से पैसा इकटठा होता है, शुद्ध कार्य में लगता है. मंदिर आदि के कार्य में जाता है. इसी आशय से बोली बोलने की परम्परा रखी गई और कोई आशय नहीं भगवान के घर कोई भूख नहीं है कि पैसा नहीं आए तो नहीं चलेगा. एक व्यवस्था बनी रहे. आदेश किसे दिया जाए. सत्र बोलने के लिए तो कार्य करने के लिए व्यवस्था और अनुशासन को बनाए रखने के लिए परम्परा है. इस निमित्त से किसी व्यक्ति का पैसा यदि अच्छे कार्य में लगता है. अनुमोदन का विषय है. व्यक्ति निमित्त देखकर के माल लेते हैं. आप भी जाते हैं चीज देखकर दाम-भाव करके माल लेते हैं. यहां पर भी परमात्मा के मंदिरों का कार्य है. आज छतीस हजार जैन श्वेताम्बर मंदिर हैं. अहमदाबाद में उपधान का समय था. बहुत बड़ी प्रेस कांफ्रेस लगी हुई थी. उपधान क्या है. उसका वैज्ञानिक स्वरूप क्या है. आत्म शुद्धि का साधन वह किस तरह से किया जाता है? यह प्रश्न किया. एक पत्रकार ने मुझसे पूछा-ये लाखों रुपयों की माला पहनाने की बोली बोली गई. उपधान को अन्तिम क्रिया माला पहनाने की. इस बोली के पैसा का आप क्या करेंगे. जगत में आज का व्यवहार ऐसा है. बिना सोचे समझे ऐसे सीधे ही इनको समझा दूं. यह पैसा देव द्रव्य में जाएगा. यह उसको गलत रूप से लेंगे क्योंकि पत्रकार हैं. माल मसाला तो मैंने दे दिया नमक मिर्च ये मिलायेंगे तब जा करके मजा आएगा. पेपर में दिया जाए और नमक मिर्च न डालें तो आयविक कि रसोई हो जाएं, कोई भी पसंद न करे. वह तो स्वादिष्ट होना चाहिए. मैंने कहा-पैसा का राष्ट्रीय रूप में शुद्ध उपयोग में आएगा. वे विचार में पड़ गए कि-ये कौन सा राष्ट्रीय कार्य है. जिसके अन्दर इस पैसे का उपयोग किया जाएगा. ___ मैनें कहा - आबू, रणकपुर, शत्रुजय, ये सब बड़े इतिहास मंदिर हैं. ये राष्ट्र की मिलकियत हैं. राष्ट्र के आभूषण हैं. हमारे देश की परम्परा का इतिहास इससे जुड़ा हुआ है. इसको आप अलग नहीं कर सकते. राष्ट्रीय प्रेरणा के प्रतीक है. हमारे मंदिर हमारी परम्परा के, हमारा इतिहास है. भारत का इतिहास इससे जुड़ा है. यह गौरव गाथा इसके Ine 421 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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