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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी एक प्रश्न और है. मन्त्र से कर्मों की निर्जरा होती है. बहुत सही बात है. मंत्राक्षर यदि शुद्ध भाव से बोला जाए, तो उन शब्दों का असर अपने हृदय पर, अपने विचारों पर पडता है, शब्दों का कम्पन आपके विचार को स्वच्छ करता है. आपके मन में एक सात्विक वातावरण का निर्माण करता है. आपका परिणाम, सात्विक विचार जो आए, उस समय मन्त्र स्मरण में परमात्मा के स्मरण के अन्दर जो सद्भाव पैदा हुआ, उस समय जो चित की एकाग्रता आई, वह कर्म को जला कर भस्म कर देती है. हमारे पूर्व आचार्यो ने जब कहा-नवकार मन्त्र का एक पद सात सागरों जितने भयंकर पाप का नाश कर सकता है. एक ओंकार के अन्दर वह शक्ति कि वातावरण में परिवर्तन ला सकता है. तो अपनी चित वृत्तियों में परिवर्तन कैसे नहीं आएगा. इसीलिए मन्त्र स्मरण को बड़ा महत्वपूर्ण स्थान दिया गया. कर्म निर्जर में सहायक माना गया. मन के परिणाम में यदि शुद्ध भाव हो. और परोपकार की रुचि आ जाएगी, पुण्य के आश्रव का भी द्वार बनता है. निर्जरा भी करता है. एक प्रश्न और. हमारे यहां सामाजिक परम्परा में कभी बालक का जन्म हो तो हमारी एक परम्परा है, वह माता परमात्मा के मंदिर में या धर्म क्रिया में महीने भर आग नहीं देती. एक व्यवहार है. परम्परा से हमारे आचार्यों ने यह व्यवहार निचित किया है. शरीर के अन्दर शारीरिक अशुद्धि ऐसी होती है. जहां तक अशुद्धि का निवारण न हो, वहां तक परमात्मा के पूजन से उसे वंचित रखा गया ताकि वहां का वातावरण कीटाणुओं से दूषित न बनें, बाकी अन्य किसी धर्म क्रिया का निषेध नहीं, सामाजिक कार्यों में नहीं, प्रतिक्रमण में नहीं, मात्र वह सारी क्रिया मानसिक होनी चाहिए. शब्दों से उच्चारण करने की नहीं. शब्द के द्वारा यदि उच्चारण पूर्वक हम क्रिया करते हैं? साधना को लेकर के यदि उसका उपयोग करते हैं. ज्ञानादि के साधन हों, तो वह ज्ञान की आसाधना मानी गई. मन के अन्दर नवकार का स्मरण कर सकते हैं, बारह दिन परिपूर्ण हो जाए, सामाजिक प्रतिक्रमण की क्रिया कर सकते हैं. कोई निषेध नहीं. बाहर दिन में यदि किसी प्रकार का सूतक हो जाए जन्म का या मरण का तो भी मन से क्रिया करने की पूरी छुट है, मानसिक क्रिया होनी चाहिए. नवकार का जाप. परमात्मा की स्तुति क्रिया हो सकती है. परन्तु मानसिक शब्दों से नहीं. ___ निषेध तो हैं नही. प्रतिक्रमण दोनो समय कर सकते हैं. परन्तु मन से, वह मानसिक क्रिया है. इस प्रकार से भाव पूर्वक क्रिया का निषेध यहां नहीं. लेकिन द्रव्य के अन्दर परमात्मा के मंदिर में पूजनादि का निषेध किया. उसके पीछे आशय, वातावरण की शुद्धि के रक्षण के लिए शारीरिक प्रक्रिया ऐसी है, अशुद्धि के कारण ही निषेध किया गया है. और कोई दूसरा कारण नहीं. - 420 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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