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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी “महाराज, अब, आपके आगे पीछे कोई नहीं. बड़ा सीधा सा सवाल हैं. क्या प्रश्न करते हो महाराज?" __ऐसे प्रश्नों को कहां से पूरा किया जाए. परन्तु हमारे विचारवान व्यक्ति हैं. बहुत समझकर के उन्होंने प्रश्न किया. उस समाधिकरण की प्राप्ति में तुम सहायक बनो. यह हमारी प्रार्थना होती है परन्तु मेरा निषेध किस जगह है जब संसार की भौतिक कामना लेकर प्रार्थना करें. देवी देवताओं के पास जाएं, उनसे बार बार की सोचना करें. जो धर्म साधना में सहायक हो. मार्ग की क्रियाओं में सहयोग देने वाले एक तुच्छ कार्य में संसार के लिए हम यदि प्रार्थना करें. यही अपना विरोध था. ऐसी प्रार्थना हममें नहीं करनी. आप वहां ऐसी भावना लेकर जाएं. मेरी धर्म साधना में तुम सहायक हो सको. तुम धर्म साधना का पुण्य प्रभाव ऐसा है, कि संसार की सारी भौतिक साम्रगी आप को मुफ्त मिलेगी. आप कभी डिपार्टमेन्ट स्टोर में गए? बम्बई में, दिल्ली में, बहुत बडे डिपार्टमेन्ट स्टोर होते हैं. वहां आप जाकर पांच पचास हजार का सौदा करो तो आप को कुछ न कुछ उपहार दिया जाता है. तो वहां भी परमात्मा के शासन में अगर सुन्दर से सुन्दर धर्म क्रिया करें, धर्म आराधना करें तो संसार की भौतिक साम्रगी आप को उपहार स्वरूप मिलती है. फिर क्यों मांगते हो? वे तो निकट में ही मिलने वाली है. अपनी प्रार्थना को दुर्बल क्यों बनाएं? प्रार्थना तो होनी चाहिए. वाचना ऐसी करें, जिसमें पुष्टि आए. दुर्बलता न आए. देवी देवताओं की तुलना समान करे. ताकि मालिक का अविनय न हो. मैं आचार्य पद पर हूं. मेरे छोटा साधु शिष्य वहां पर बैठा है. आप आकर सीधे यही वन्दन करो. उनकी भक्ति करो. गुरु पूजन करो. और मैं वहां बैठा ध्यान करता हूं. यह विचार ठीक है. जगत के मालिक जगत के नाथ त्रिलोकी नाथ परमेश्वर जो मोक्ष देने वाले सर्वशक्ति मान आत्मा हैं, उनके दरबार में जाकर हमारे जैसे गुरुओं की देवी, देवताओं की जो मदमस्त हैं, अंपूर्ण हैं. जिनके पास देने कोई ताकत नहीं. ताकत तो परमात्मा की भक्ति में छिपी है. ऐसे समय आप जाकर के मात्र देवी देवताओं और गुरुजनों का गुणगान करो. उनकी आरती उतारो. भगवान काया अवस्था में बैठे रहें. मेरा वहां विरोध है. जो जगत का मालिक है. उसका आप अविनय करो. जो अभी जगत में मौजूद है. कर्म पूरे नष्ट नहीं हुए. मदमस्त है. न जाने कितने भव संसार उनके बाकी हैं. यह तो ज्ञानियों का विषय है. - हमारे जैन धर्म के अनुसार उनको स्थान मिला हुआ है. अब उच्चस्थान में हैं. जैसे अन्य पदमावती माता हैं. भैरव हैं. मणिभद्र हैं. कोई भी देवी देवता हों. प्रश्न करता, तो मैं कहूंगा-कहां सर्वथा विभेद है. उनको उनके रूप में उचित स्थान दिया गया है. उनका 418 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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