SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 446
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी मफतलाल कहीं पहुंच गए. किसी व्यक्ति ने कहा--तुम्हें मालूम है मेरे बाप दादा कैसे थे. अपने गौरव का प्रश्न, अपने-अपने दादाओं का इतिहास, बात से बात निकली. उन्होंने कहा-क्या बताऊं हमारे बाप दादा ने ऐसा राजमहल, इतना ऊंचा बनवाया कि इतना आज तक बना नहीं. यह तो ठीक है परम्परा में हम सुनते आए हैं. ऐसा ऊंचा बनवाया कि आज तक बना नहीं, अचानक किसी ने देखा. दो तीन और भी साथियों ने अपनी बात कहीं. एक व्यक्ति ने कहा.क्या बतलाऊं हमारे बाप दादाओं ने भी इतनी ऊंची हमारी हवेली बना दी. हमारा लडका गोदी का ऊपर से गिरा उसकी ऊंचाई इतनी थी, जब तक नीचे पहुंचा शादी लायक हो गया. मफतलाल रोज आते, कुछ न कुछ सात्विक प्रश्न कहीं से सुनकर. एक दिन उसने पूछा. महाराज! मुझे समझायें . आप हर रोज इन्द्रियों की बात करते हैं. इन्द्रियाँ कितनी हैं. महाराज ने कहा - "मैं समझता हूँ इन्द्रियां पांच होती हैं. और उनके वंश तेईस." "महाराज! पांच इन्द्रियों के विषय में जरा विस्तार में हमें समझाइये." महाराज ने कहा - “मात्र समझना है. या कुछ करना भी है?" "नहीं-नहीं महाराज, जानकारी लेकर कुछ करूंगा.". "इन्द्रियों के विषय में आप कुछ जानकारी लेकर आए ?" "महाराज, क्या बताएं, सारे आचार्य आए, बहुत सुना है." महाराज ने कहा - “इन्द्रियां किसे कहते हैं?" मफतलाल को नाम आए तो बतलाएं, वह तो सुनी हुई बात थी. उड़ गयी. उन्होंने कहा महाराज हाथी पांच इन्द्रियां हैं, बुद्धि दौड़ाई. बात सही थी. महाराज ने भी स्वीकार किया कि हाथी पांच इन्द्रियां होती हैं. यह तो मैं भी मानता है. परन्तु इन्द्रियों के नाम तो गिनाओ. महाराज ने कहा - "हिसाब बड़ा सरल है. चार इन्द्रियां कौन?" "चार पांव वाले जितने भी प्राणी गाय, बकरी बगैरह सब चार इन्द्रियां हैं." महाराज ने कहा - “चतुरेन्द्रिय कौन?" महाराज ने सोचा फिर पूछा जाए तो मफतलाल ने भी सोचा कि मैं जवाब भी पूरा ही दूंगा, लोगों को तो मालूम हो कि मैं कुछ हूँ. “महाराज. आकाश में उड़ने वाले सब पक्षी में इन्द्रियां हैं." महाराज ने कहा - "इन्द्रिय कौन?" "महाराज, दो इन्द्रिय तो मैं हूं. मेरे और मेरी पत्नी के सिवाय और कोई नहीं. हमारे घर में हम दो ही हैं, तीसरा कोई नहीं." महाराज ने फिर पूछा -- “एकेन्द्रिय कौन?" Mod 417 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy