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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3Dगुरुवाणी महावीर का कथन वैज्ञानिक सत्य है, खड़े हो गये और कहा -- “माई डीयर फ्रेन्ड्स माई स्टोमक इज नो प्लेस फार डैड बाडी “भाइयों माफ करना! मेरा पेट इन मुर्दो का कब्रिस्तान नहीं है". मरे हुए जीवों का मांस खाऊं और पेट को कब्रिस्तान बनाऊं. चले गये वहां से. उनकी बहादुरी में नैतिक बल इतना था. कोई मित्र वहां पर गया, उन्होंने अपनी वसीयत पढ़ाई. उनकी वसीयत आज भी है. मरते-मरते क्या लिखा, “भगवान से अन्तिम प्रार्थना उस वसीयत में की. भगवान! अगर पूर्वजन्म इस दुनिया में है. तो मेरा जन्म इण्डिया में हो. खासकर जैन परिवार में विशेष रूप से इस जाति में मेरा जन्म हो. ताकि मां के गर्भ से मुझे शाकाहार का संस्कार मिले. परिचय का यह परिवर्तन, उनकी वसीयत आज भी इंग्लैंड में मौजूद है. पांच हजार मील दूर रहने वाला, पुस्तक का परिपथ और इतना बड़ा परिवर्तन. यहां तो 120 दिन से मैं हाजिर हूं, रोज अपना परिचय देकर देखू, कैसा परिचय देता हूँ, पर्युषण के बाद मालूम पड़ेगा. परमात्मा है, प्रवचन से परिवर्तन तो आना ही चाहिए. आहार की शुद्धि विचारों की शुद्धि लेकर आएगी. बहुत सारे व्यक्तियों में क्या होता हैं, प्रश्न तो कर लेते हैं परन्तु प्रश्न के अनुसार समाधान नहीं होता. मान प्राप्त करके अपने जीवन में वैसा निर्माण नहीं करते. प्रश्न तो उसके मन में भी था, परन्तु प्रश्नों का समाधान ऐसा मिला कि जार्ज बनार्ड का जीवन एक दम बदल गया. हमारे यहां भी प्रश्न करने वाले तो बहुत हैं परन्तु समाधान की प्राप्ति के बाद परिवर्तन कितना? मफतलाल भी प्रश्न करने की आदत से लाचार हैं. भगवती सूत्र का विकास चल रहा है. वहां तत्व ज्ञान का विशेष कुछ चीज नहीं पूछ लेना ताकि लोग समझ लें. कि मैं कितना जानता हूं. बहुत से लोगों में दिखाने की आदत होती है. आता जाता कुछ नहीं फिर भी दिखाना बहुत है. मारवाड़ में एक कहावत है. उसके अन्दर हाथ पांव नहीं होते, मात्र विचारों की कल्पना होती है. विचार तरंग होता है. हवाई उड़ान होती है. और बात रख देते हैं कि तुझ से ज्यादा मैं जानता हूं, शास्त्रों के विषय में हमारा कोई परिचय नहीं. उसकी गहराई में गए नहीं हम, शास्त्रों से सम्बन्ध नहीं. पर पूछने के लिए प्रश्न पूछ लेना. चाहे वह कोई हो. मन की कल्पना हो. जिसके प्रति विचार में कोई आदर नहीं है. वह प्रश्न हम लाकर रख देते हैं. मारवाड़ में एक कहावत है कब कहूं गप? बड़ी चीज बारह हाथ में तेरह हाथ का बीज. यह भी एक प्रश्न है. क्या कहा जाए तो ऐसा होना चाहिए. जिसका कोई हाथ पांव न हिले. प्रश्न में भी विचार का आकार मिलना चाहिए. उसकी सुन्दरता नजर आनी चाहिए. 416 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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