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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी पाप जो मेरा उदय था. आचार्य भूमि में जन्मा आज आशीर्वाद लेने आया हूं. जर्मनी जा रहा हूं. अपने देश जा रहा हूं, ऐसा आशीर्वाद दीजिए. इस भारत भूमि पर जन्मूं." ___ पढ़ने के बाद चिन्तन और मनन के बाद इतना बड़ा परिवर्तन आया, अन्तिम कामना. ऐसा कोई व्यक्ति मेरे पास मंगला चरण सुनने नहीं आया. भवान्तर में भी परमात्मा का दर्शन हो, धर्म मिले, आज तक प्रतीक्षा करता हूं, कोई आ जाए. महाराज बम्बई जा रहा हूं. काम बन जाए, आपका आशीर्वाद, आप के पाप में मैं भी भागीदार बनूं. कोई इस भावना से नहीं आता कि हालांकि हम तो देते हैं ही हैं. मंगलाचरण देने के पीछे हमारा आशय शुद्व है, यह आत्मा सद बद्धि प्राप्त करे. सन्मार्ग में चले. कदाचित बुद्धि आ जाए तो मंगलाचरण के शब्द उसकी रक्षा करें. यह दिया हुआ शब्द परमाणु उसके अन्दर अन्दोलन पैदा करे, बुरे विचारों को वहां से भगाए. साधुओं का तो यही आशीर्वाद होगा. डाक्टर के पास यदि डाक भी आता है, तो भी उसे बचाएगा. उसका लक्ष्य है उसको बचाना. वह कार्य करता है, यह नहीं सोचेगा कि इसको बचाऊंगा फिर से डाका डालेगा. वह तो सिर्फ बचाने की भावना से बचाता है.. __साधु पुरुष के पास कोई भी दुखी आत्मा आए, कोई संसार का दुख लेकर आए उसे सांत्वना देंगे. मंगलचरण सुनाएंगे, आशीर्वाद देंगे, उसकी आत्मा को दुर्विचार से मैं रोकू, मैं इस आत्मा का रक्षण करूं. प्रेम पूर्वक इसे समझाने का प्रयास करूं. हमारा तो यही प्रयास होगा, पापी आत्मा आये, चाहे पुण्यात्मा आए. हमारे यहां तो हास्पिटल है. जार्ज बर्नार्ड यूरोप के बहुत बड़े साहित्यकार थे. लन्दन में थे. कुछ वर्ष पहले ही उनका स्वर्गवास हो गया. महात्मा गांधी उनसे स्वयं मिलने गए थे. वह कितने महत्वपूर्ण व्यक्ति थे कि महात्मा जी स्वयं उनके पास जाते और काफी समय देते. अपनी जीवन कथा में भी गांधी जी ने उनका उल्लेख किया. नेहरू भी उनसे मिले हैं. वह व्यक्ति बम्बई में आए. किसी मित्र के द्वारा जाकर के प्रभु का दर्शन किया और नीचे उतरे, छोटा सा बुकलेट था. जैन दर्शन के विषय में महावीर का परिचय था. महावीर के सिद्वान्तों का परिचय था. जब हाथ में लेकर गाड़ी में बैठने लगे, उन्होंने पूरा परिचय पढ़ा, परिचय के द्वारा ऐसा परिवर्तन हो गया. भारत जब छोड़ने लगे उन्होंने संकल्प लिया, आज के बाद कभी मांसाहार नही करूंगा. जब इंग्लैड गए. इस परिसर का परिवर्तन कितना बड़ा? इतने बड़े वहां के राजनीतिज्ञ व्यक्ति, बड़े साहित्यकार, उनको जब नॉबेल प्राइज मिला, संसार का माना हुआ पुरस्कार एक लाख पाउंड का होता है. उनका समझना जब हुआ , पार्टी में जब उनको बुलाया गया. सारी सांमिष भोजन सामग्री वहां पर थी पार्टी में. वहां गये वहां उन्होंने देखा. वे खड़े हो गये. कैसा परिवर्तन था. उन्होंने यह नहीं समझा ये लोग क्या समझेंगे. सभ्यता के विरुद्ध मेरा व्यवहार होगा. नहीं. जो मैंने निर्णय किया वही सही है. 415 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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