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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी - - - जहां तक राग का परिणाम था, वहां तक सफलता नहीं मिली, जैसे ही राग का अन्त हो गया, वैसे ही युद्ध में सफलता मिली. भौतिक युद्ध में राग का विजय प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है. जहां तक परिवार का राग जाएगा. वहां तक सैनिक युद्ध में कभी सफल नहीं बन सकते. यही चीज यहां है. कर्मयुद्ध लड़ने के लिए अन्तर जगत के अन्दर वहां पर यदि आप राग को लेकर गये. कितनी ही सुन्दर आपकी साधना हो, साधु बनकर के मोक्ष मार्ग की आप आराधना करते हो परन्तु ज्ञानियों ने कहा-सफलता नहीं मिलेगी. दो विचारों से, जब तक राग का अभाव नहीं होगा. वे विचार आपको वीतरागता तक नहीं पहुंचाएंगे. कर्म का नाश हो, ऐसा साधन नहीं बनेगा. राग और द्वेष के परिणाम को पहले ही आपको उपेक्षित करना पड़ेगा. विसर्जित कर देना पड़ेगा. उसके बाद यदि आप अन्तर युद्ध के मैदान में जाएं, जीवन की सारी सफलता आपको मिल जाएगी. सारा जीवन हमारे लिए एक प्रकार से युद्ध का मैदान है. ___टोलस्टोय ने जीवन की परिभाषा दी 'दी लाइफ आफ दी मैन,दी फील्ड आफ बैटिल' यह सारा जीवन युद्ध का मैदान है. संघर्ष करते रहिए. संघर्ष में आज नहीं कल तो सफलता मिलेगी. आध्यात्मिक क्षेत्र के अन्दर, यदि एक बार प्रवेश हो गया. अन्तर जगत में शत्रुओं से लड़ने की कला आपको मिल गई,तो आज नहीं तो कल जरूर आपको सफलता मिलेगी. इसमें कोई शक नहीं. एक बार आपको मन में यह दृढ निश्चय तो करना ही पड़ेगा कि मुझे आखिर उस लक्ष्य को पाना है. चाहे कैसा भी संघर्ष आ जाए. देश की आजादी की खातिर जो शब्द एक बार महात्मा गांधी ने कहा था 'करो या मरो' हमारे यहां प्राचीन काल में ऋषि मुनियों ने इससे भी सुन्दर शब्द दिया. देहं पातयामि कार्यं साधयामिवा मैं अपनी साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए शरीर का भी विसर्जन करने को तैयार हूं परन्तु मैं अपनी सफलता लेकर जाऊंगा. परमात्मा के समक्ष इस ख्याल को लेकर जाये. ऐसी दृढ़ता से व्यक्ति सफलता लेकर के आता है. परन्तु यहां पर पहले से ही रोते हुए जाये तो कुछ नहीं मिलेगा. अपने देश में एक कहावत है “रोता जाये, मरों का समाचार लाये" जैसे ही आराधना का प्रश्न आया, एकदम चेहरा उतर जायेगा. क्या सफलता नहीं मिलती? संसार का मोह छोड़ना पड़ता है. उसके बाद परमात्मा का प्रेम जागृत होता है. एक बोतल में दो चीज़ नहीं आती. मन की बोतल में या तो संसार हो या मन की बोतल में परमात्मा हो या तो आप गंगा जल भरें नहीं तो गटर का पानी भरा हुआ है. - - 413 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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