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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी को देखने की मैत्री दृष्टि, मंगल दृष्टि, उसको मिल जाएगी. मित्रवत् जगत को मैं देखने लगू सारा ही जगत मेरे प्रति सद्भाव प्रकट करने वाला बने, यह बड़ी विशेषता उसमें नजर आएगी. जहां तक अन्दर राग है, द्वेष का पदार्थ है, सारे पदार्थ अशुद्ध हैं, वहां तक जगत के अन्दर भौतिक सफलता भी नहीं मिलेगी, आध्यात्मिक चेतना की सफलता कैसे मिलेगी? जहां तक मन के अन्दर आप का परिणाम दूषित होगा, अतिशय द्वेष भाव होगा, वहां तक तनाव होगा, क्योंकि द्वेष के कारण तनाव आने वाला है, कदाचित् अतिशय राग क्षमता होगी, आप का लक्ष्य वहीं पर केन्द्रित होगा. यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है, आप अपने कार्य में कभी सफल नहीं होंगे. मेवाड़ के अन्दर एक बहुत सुन्दर राजकुमार की नई शादी हुई. नई शादी के बाद राजकुमार का मोह इतना कि एक दिन भी अपनी स्त्री का वियोग वह सह नहीं पाता. एक दिन का वियोग भी उनके अन्दर दर्द और बेचैनी पैदा कर देता. किसी कारण से दुश्मनों को मालूम पड़ गया कि मौका अच्छा है. राजकुमार का ध्यान राज्य की तरफ नहीं. प्रशासन के तरफ नहीं. नई महारानी की तरफ है. इस राग दशा के सन्दर मौके का फायदा उठाया जाए. चारों तरफ से न ने राज्य को घेर लिया. बड़ी सेना थी. राज्य के अन्दर सारी व्यवस्था स्वयं सरा और सन्दरी में मस्त रहने वाला, जरा भी ध्यान अपने राज्य की तरफ नहीं, प्रजा की तरफ नहीं, प्रशासन की ओर नहीं, इस राज दशा का परिणाम, महल के अन्दर शराब पीता रहा. सेनापति का आगमन हो गया. मोर्चा डाल करके यहां खड़े हैं या तो आप युद्व करें या समर्पित हो जाएं. ___ नशे के अन्दर होश नहीं रहा. राजकुमार ने कहा ठीक है, देखा जाएगा. सेना को तैयार करो मुकाबला करेंगे. आज नहीं तो कल, युद्ध तो हम जीतेंगे. आचरण में कुछ नहीं, शब्दों में आदेश दे देता है. स्वयं के जीवन में वह जागृति नहीं कि मेरा राज्य चला जाएगा. मेरा तिरस्कार करेंगे, लोग मुझे कायर कहेंगे, मेरे कुल को कलंकित करेंगे, मुझे सावधान होना चाहिए, नहीं. मोह के नशे में कछ मालम नहीं पडा और राग दशा ही परिणाम दुश्मन की सेना नगर की सीमा तक आ गई. महारानी को मालूम पड़ा की मेरे पति मोह के कारण युद्व में जाने से कतराते हैं, डरते हैं. मुझे छोड़कर जाना उन्हें पसन्द नहीं. क्या किया जाए? अगर मेरे मोह के कारण राज्य का पतन होता है. राज्य से यदि हमारे पति भ्रष्ट बनते है. नारी पूजा का तिरस्कार उनको मिलता है, ऐसा कार्य अपनी जीवित अवस्था में नहीं होने दूंगी. ___ महारानी की गर्जना से मोह निद्रा टूट गई. शब्दों ने ऐसा जोश दिया. रानी ने तिलक करके उसको विदाई दी जाते-जाते. राजकुमार घोड़े पर बैठ गया, तलवार लेकर युद्ध 411 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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