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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी सभी इन्द्रियों पर विवेक का नियंत्रण हो जाए और हमारे अधिकार में आ जाएं, आत्मा पर अधिकार पाना बहुत सरल हो जाए, वह स्थिति आज तक आई नहीं, वह स्थिति तूने लाई नहीं है. आज तक यही प्रयास बना, कितने ही महापुरुषों ने जीवन का बलिदान देकर स्वयं को प्राप्त किया है. द्वितीय विश्व युद्ध के समय कैसे व्यक्ति थे. अपने देश के लिए, राष्ट्र के लिए, अपने स्वामी के लिए, अपने प्राणों की आहुति दे देते थे. परन्तु अपनी ईमानदारी को कलंकित नहीं करते. अगर ऐसी भावना अपने अन्दर आ जाए, चाहे प्राणान्त कष्ट आ जाए, प्राण का मूल्य मुझे चुकाना पड़े तो भी मैं अपनी ईमानदारी से जरा भी पीछे नही हटूंगा. धार्मिक कार्यों में पूरा प्रामाणिक रहूंगा. मेरे हरेक कार्य पर परमात्मा की दृष्टि है. मेरी आत्मा स्वयं उस कार्य को देखती है. मैं बिल्कुल प्रामाणिक प्रवेश पूर्वक उस कार्य के लिए जागृत रहूंगा. यदि जरूरत पड़े, प्राण विसर्जित कर दूंगा. कितने ही व्यक्तियों के जीवन-इतिहास हमारे सामने हैं, युद्ध के समय ऐसे भी प्रसंग आए हैं. बहुत बड़ी खाईं बनी हुई हैं. भयंकर आग लगी हैं. उस भव के अन्दर सेना को आदेश मिला है कि मौका बड़ा अच्छा है यदि दुश्मन पर अचानक हमला कर दिया जाए तो एक ही रात्रि में बहुत बड़ी सफलता हमको मिल जाएगी. परंतु यह पुल यहां पर है नहीं, इतनी बड़ी सेना को कैसे वहां पहुंचाया जाए. खाईं में दुश्मनों ने आग लगा दी. ऐसी स्थिति में खाई को क्रास कैसे किया जाए. कमांडर ने ऑडर दिया कि मुझे दो हजार ऐसे सैनिक चाहिए. इसी समय ताकि तत्काल वहां पहुंचा जाए और अचानक आक्रमण किया जाए तो सारा मोर्चा हमारे हाथ में आ जाएगा. __बड़ी आसानी से, बड़ी सरलता से, हम सफलता प्राप्त कर लेंगे. दो हजार सैनिक चाहिये. इस खाई के अंदर जो जलती खाई में कूद सकें. सारी रैजिमेंट तैयार हो गई. जैसे ही सेनापति ने आदेश दिया कि राष्ट्र के लिए तुमको समर्पित होना है, सैनिकों ने जरा भी आगे पीछे नही देखा, मेरी घरवाली का क्या होगा? बच्चों का क्या होगा, कोई भविष्य का स्वप्न नहीं देखा. कोई मन में मानसिक कल्पना नहीं. जितने भी सैनिक थे, सबने अपने राष्ट्र के लिए आहुति दे दी. आदेश के साथ कूदना शुरू कर दिया. पूरी की पूरी खाईं सैनिकों ने इस प्रकार भर दी कि उसके ऊपर से गाड़ी जाने लग गई. टैंक जाने लग गए. साधन सामग्री तक पहुंचने लग गई. दो ढाई हजार सैनिकों ने राष्ट्र के लिए जलती खाईं में प्राण विसर्जन कर दिया. जब इस युद्ध का इतिहास देखा जाता है. लोग इतनी प्रसन्नता से अपने प्राणों को अर्पण कर देते हैं. अगर धार्मिक क्रियाओं के अन्दर तत्व के रक्षण के लिए, प्रामाणिकता को बचाने के लिए, आत्मा के गुणों के रक्षण के लिए, हमारे अंदर इस प्रकार की भावना IANS 408 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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