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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी क्रिया-विधि अनन्त उपकारी जिनेश्वर परमात्मा ने जगत के सर्व जीवों के कल्याण के लिए धर्म साधना के द्वारा मोक्ष-मार्ग का मंगल परिचय दिया है. अनादि अनन्तकालीन संसार के परिभ्रमण से आत्मा किस प्रकार मुक्त हो, स्वयं की प्राप्ति किस प्रकार सरल बन जाए, स्वयं की प्रसन्नता में आत्मा किस प्रकार मग्न रहे, संसार को भूल करके स्वयं की स्मृति में आत्मा कैसे जागृत बने, परमात्मा ने अपने मंगल प्रवचन के द्वारा वे उपाय बतलाए हैं. यदि प्रवचन के माध्यम से व्यक्ति प्रयास करे, जीवन का प्रयत्न यदि प्रारम्भ करे, तब तो निकट भविष्य के अन्दर अपनी पूर्णता को व्यक्ति प्राप्त कर सकता है. यदि प्रयत्न का अभाव रहा तो संसार मौजूद है जिस संसार के नाश के लिए जिन विषयों के नाश के लिए हमारा सम्यक पुरूषार्थ है. अनादि काल से यह संसार हमारा सेन्ट्रल जेल है, कर्म के कष्टों में इन्द्रियों का गुलाम बन करके मैं रहता हूं, किस तरह से मैं सबल बनूं, स्वतन्त्र बनं, अपने आनन्द के परम उपयोग और विवेक में यदि जागति आ जाए तो पूर्णता प्राप्त करना कोई कष्टमय नहीं. जरा भी असंभव नहीं. परन्तु आज तक हम विचार के अन्दर इतना विलम्ब कर दिया. समय निकल गया विचार के विलम्ब में कभी कार्य संपन्न या सफल नहीं हो सकता. जहां तक व्यक्ति विचार में विलम्ब करेगा, वहां तक संसार की स्थिति मौजूद मिलेगी. ___अलग-अलग दृष्टि कोण से प्रवचन के द्वारा आपने व्यवहार का परिचय प्राप्त किया कि मेरा व्यवहार इतना सुन्दर बन जाए, व्यवहार का हरेक क्षेत्र मेरा धर्ममय बन जाए ताकि किसी भी प्रकार से पाप का आनन्द मेरे अन्दर न हो. साधना सावर्धन रहने के लिए है. सावधानी इसीलिए रखनी है. धर्म बिन्दु ग्रंथ का मुख्य आशय यही है कि जीवन में पाप का प्रवेश द्वार बन्द होना चाहिए. सारे द्वार पुण्य के प्रवेश के लिए होने चाहिए. जिन इन्द्रियों से आज तक पाप उपार्जन किया, उन समस्त इंद्रियों द्वारा मैं पुण्य उपार्जन करने वाला बनूं. नेत्र का उपयोग यदि सुन्दर वर्गों के लिए हुआ तो इन्द्रियों का माध्यम परमात्मा की अनुमति का कारण बनेगा. कान का उपयोग यदि सही तरीके से किया गया. मैं कभी पर निन्दा श्रवण नहीं करूंगा, धर्म-कथा श्रवण करूंणा, किसी आत्मा के गुणों की प्रशंसा श्रवण करूंगा तो यह कर्णेद्रिय की सफलता होगी. पाप का प्रवेश द्वार पुण्य का प्रवेश द्वार बन जाएगा. अपनी जीभ से कभी कोई गलत आचरण नहीं करूंगा, कभी असत्य भाषण नहीं करूंगा. वैर और कटुता का कभी मेरी जीभ से वर्णन नहीं होगा. इस प्रकार अगर संकल्प कर लिया जाए. संकल्प में यदि दृढ़ता आ जाए तो जीवन धन्य बन जाए. हमारी जीभ प्रभु का प्रवेश द्वार बन जाए. 407 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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