________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी - किया है. हमारा प्रयास निष्फल न जाए इसीलिए सावधान रहना. आहार से मेरा कोई विरोध नहीं, लेकिन आहार सात्विक हो, शरीर का पोषण करने वाला हो. उसके साथ बिना आसक्ति के भोजन हो, दीन दुखी आत्मा को देकर भोजन करे. सुपात्र दान करके भोजन करे ऐसा मंगल भोज आपकी आत्मा को निरोगी बना देगा. आत्मा का आरोग्य और मनका आरोग्य तो शरीर का आरोग्य देने वाला ही होता है. शरीर की चिन्ता नहीं अपने मन की चिन्ता करे. आहार वासना को उत्पन्न न करे.. अकबर के समय 450 वर्ष पहले चम्पा श्राविका श्री माता तुल्य थी. छः महीने का उपवास. सम्राट अकबर के मन में संशय पैदा हुआ, अपने महल में लाकर रखा, वहां पर उसकी आराधना जब देखी अकबर दंग रह गया. अकबर ने कहा-हम तो रोजा करते हैं. रोजा में भी रात को मिठाई चलती है, जिसमें भी हमारी हालत बुरी हो जाती है. इस श्राविका ने छ: महीने का उपवास किया धन्य है. बलिहारी है. श्राविका से पूछा - “यह शक्ति तुमको कहां से मिली?" "गुरु महाराज के आशीर्वाद से." "तुम्हारे गुरु कौन हैं? “वह तो अहमदाबाद हैं, विजयहीर सूरि." अहमदाबाद से आशीर्वाद भेजा और दिल्ली में तपश्चर्या हो गई. मैं ऐसे गुरु का दर्शन करना चाहता हूं. यहां से फरमान भेजा, ऐसे महान गुरु को यहां लाने के लिए पूरा शाही लमाजमा भेजा जाए. हाथी धोड़े गए, पूरे समाज के साथ वहां पर आमन्त्रण देने गया. आचार्य भगवन्त ने कहा - "हम तो साधु हैं, पैदल जाते हैं, यह सब हमारे काम नहीं आएगा. अहमदाबाद का सबा सम्राट को लिखता है. मैं दर्शन के लिए गया, और आचार्य भगवन्त का परिचय किया. यह तो खदा का पैगम्बर दिखता है, कोई अवतारी पुरूष नजर आता है." तब अकबर प्रभावित हुआ. आईने अकबरी के अन्दर अबुल फजल ने इसका बड़ा सुन्दर वर्णन किया है. ऐतिहासिक वर्णन है. चम्पाश्राविका का, विजयहीर सूरि जी का वर्णन आता है. सर्व प्रथम उनकी कृपा से हमारी प्रवर्तन हुआ, और सम्राट ने प्रतिबोध प्राप्त करके, ये सारे तीर्थ विजयहीर सूरि महाराज के नाम करके पटटा अर्पण किया जो आज भी अहमदाबाद म्यूजियम में मौजूद है. अकबर के हस्ताक्षर के साथ. "सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम्" म 406 For Private And Personal Use Only