________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी - दिन रस में आनन्द आ गया, जीवन का पतन तैयार है. हमारे महानआचार्य थे, पांच पांच सौ साधुओं को ज्ञान देने वाले, मथुरा के अन्दर यह आगम में वर्णन आता है. मथुरा एक समय जैनों की महान नगरी थी. आगम की संपूर्ण वाचना हुई थी. साधुओं का बहुत बड़ा सम्मेलन आज से पन्द्रह सोलह सौ वर्ष पहले हुआ था. पटना के बाद दूसरा सम्मेलन मथुरा में हुआ. अंतिम सम्मेलन जहां आगम लिखा गया. भगवान महावीर के 980 वर्ष बाद बल्लभपुरी में हुआ. भगवान के निर्वाण के तुरन्त बाद पतन हुआ. दूसरा मथुरा और तीसरा सम्मेलन हमारा उस समय बल्लभपुरी में हुआ. निर्वाण के 980 वर्ष के बाद परमात्मा की वाणी को लिखित रूप दिया गया. अक्षर लिखे गये. वहां तक तो मौखिक धारणा ऐसी थी, आगम कण्ठस्थ रहते थे. जैसे-जैसे विस्मृति आई, साधु भूलते चले गए. काल का प्रभाव, आगम लिखित किया गया. उस समय 500 साधुओं को पढ़ाने वाले महान आचार्य मंगु ऐसी चमत्कारिक शक्ति थी उनमें, ज्ञान था विद्वता थी, चरित्र का तपोबल था, परन्तु आप जैसे सज्जन श्रावकों की बहुत भक्ति थी. कोई पूर्व कर्म का कारण आचार में शिथिल बन गए. शिष्य बड़े विवेकी थे, उन्होंने सोचा गुरु को अवर्णवाद कभी नहीं बोलना. विद्या गुरु हैं. धीमे-धीमें एक-एक साधु वहां से आज्ञा लेकर चले गए. यह इतने शिथिल बन गए इतने प्रमाद से जीवन घिर गया, संसार की वासना को लेकर श्रावक मिल गए. भक्त वर्ग मिल गए. गुरु महाराज के वचनों के प्रति विश्वास, इनका आशीर्वाद मिला, कल्याण हो जाएगा. इस भावना से बेचारे भक्त श्रावक रोज उनकी भक्ति करें. ___ आचार से इतना पतित बन गए कि मंदिर छूट गया, प्रतिक्रमण छूट गया, सारी आराधना छूट गई . खाना, पीना और पड़े रहना. एक शिष्य बड़ा विनयी था, गरु का हित चिन्तन करने वाला था, उसने देखा यदि मैं भी चला गया तो गुरु का पतन निश्चित है. आज नहीं तो कल कभी न कभी मैं अपने गुरू देव को सावधान करूंगा. पर्युषण का दिन आया तो भी वही दशा. कोई व्याख्यान, प्रवचन कोई आराधना नहीं. किसी व्यक्ति को ऐसी ताकत नहीं, दृष्टि राग ऐसा था कोई बोले नहीं. ___संवत्सरी के महा मंगलकारी दिन ऐसा प्रसंग आया कि आराधना तो मुक्त हो गई, आराधना हई नहीं, उसका परिणाम आया, आराधना से विमुख हो गए. प्रतिक्रमण का समय हुआ, प्रतिक्रमण चल रहा था, गुरु आराम कर रहे थे, महा अनाचारी थे, अपने जमाने के सबसे बड़े विद्वान आचार्य 500 शिष्यों को वाचना देने वाले महाज्ञानी. देखें, कर्म कैसे नचाता है. ___ जरा सा प्रमाद किया जीभ के आधीन हो गए, रसेन्द्रिय के गुलाम बन गए, पतित हो गए. संवत्सरी का प्रतिक्रमण तक नही किया था, शिष्य गुरु का हित चिन्तन करने वाला था. आज नहीं तो कल इनकी आत्मा को जन्म आएगा.- गया, वह आराम कर रहे 404 For Private And Personal Use Only