SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 432
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी ] मैं अंतिम दरवाजे के पास पहुंचा, तब तो कागज बन कर तैयार हो कर आ रहे थे, एकदम वाईट पेपर, देखकर के आखें प्रसन्न हो गई. वह सरस्वती का साधन बन गया. न कोई दुर्गन्ध, न किसी तरह की अरुचि पैदा हो, जैसे ही मैं फैक्टरी देख कर आया मेरे साथ जो साध थे मैंने कहा साध संसार को अलग दष्टि से देखता है उसी चीज को संसारी अपनी दृष्टि से देखता है. मैंने कहा कि यह जड़ फैक्टरी मैं देखकर के आया, मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. इस जड़ के अन्दर कितनी बड़ी विशेषता है. खराब से खराब इस फैक्टरी का खुराक है, परन्तु इसका प्रोडक्शन सुपर फाइन. हाथ में लेने से आनन्द आ जाए, चिथड़ा कागज बन करके आता है, सरस्वती का साधन बनता है. उस कागज पर परमात्मा के शरीर का निवास होता है. नाम बनता है. आत्माराम भाई की फैक्टरी देखी, जिसमें कोई हडताल नहीं, लेबर की जरूरत नही सेठ आत्माराम भाई की चलती फिरती बेड़ी, अन्दर से प्रोडेक्शन चालू रहता है, मशीन चलती रहती है. जो फेल हो जाए तो कभी रिस्टार्ट होती नहीं, मैंने कहा यह चैतन्य की फैक्टरी है, वह तो जड़ फैक्टरी परन्तु इससे मुझे वह फैक्टरी अच्छी लगी जड़ फैक्टरी. खराब से खराब खुराक और सुपर फाईन मैटिरियल, आपका रा मैटिरियल कैसा? हलवा, पुरी, रसगुल्ला, सुगन्ध से भी आनंद, देख कर भी आनंद. इस फैक्टरी को चलाने का रा-मैटिरियल कैसा? बड़ा सुन्दर! पर कभी प्रोडक्शन देखा है? घृणा से भरा हुआ, तिरस्कार से भरा हुआ. वह कहता है कि शरीर का साथ मैंने बारह घण्टे किया. कभी जा रहा था जंगल से लौटकर के आया भूख और नेक, मुझे तिरस्कृत करके क्यों जा रहे हो. मेरी तरफ मुँह फेर करके क्यों जा रहे हो? इतनी घृणा जरा विचार करो, तुम जानकार हो, मैंने शरीर का बारह घण्टा साथ किया, सुबह गर्म-गर्म हलवा था, बारह घण्टे शरीर के साथ के कारण मेरी यह दशा हई. लोग थूक करके जाते हैं, घृणा करके जाते हैं, जाने कितना तिरस्कार मेरा करते हैं. मेरे नाम से घृणा करते हैं. जरा विचार कर, शरीर के साथ बारह घण्टे के कारण मेरी यह दशा हुई, हलवा मिट करके विष्ठा बना. जिन्दगी भर जो शरीर को लेकर चलता है, उसकी क्या दशा होगी? जरा सोच लेना. शरीर के प्रति सबका यह व्यवहार. यहां तो मालिक का ध्यान रखना है, नौकर का नहीं. हमारी आदत ऐसी कि हम ज्यादातर नौकर का ही ध्यान रखते हैं. जीभ क्या माँगती है? आंख क्या देखना चाहती है. कान क्या सुनना चाहते हैं? हमेशा हमने विषयों की गुलामी करके ऐसी आदत बिगाडी कि मालिक नौकर बन गया और नौकर मालिक बन गया. कहां से आनन्द आएगा? अगर सावधान न हए तो दिवाला मनाना पडेगा. इसीलिए कहा है-आहार करते समय उसमें आसक्ति नहीं, रसेन्द्रियकी लोलुपता नहीं चाहिए, जिस 403 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy