SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 431
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी - का भाव है ताकि इसके द्वारा इसका और सुन्दर उपयोग करूं. साधना के इस क्षेत्र में | उपयोग हो. चाहे अच्छी लगने वाली कितनी ही सुन्दर साम्रगी लाएं, आपकी थाली में रखे, आप खाइये परन्तु उसमें आनंद नहीं. आप खाएं मुझे उसमें आनंद है. शरीर का धर्म है, शरीर के निर्वाह के लिए खाना आवश्यक है. खाने का विवेक होना चाहिए. शरीर के कारण जाने कितना पाप करना पड़ा. इन इन्द्रियों और शरीर के लिए कितना भयंकर संसार उपार्जन किया. ये बड़े खतरनाक हैं. सेठ ने उस नौकर के साथ सदव्यवहार किया लेकिन उसने उसके पुत्र को खत्म कर दिया. कितना भयंकर अत्याचार किया. विश्वासघात किया. इस शरीर ने भी आत्मा के गुणों की न जाने कितनी बार हत्या की. न जाने कितना भयंकर विश्वासघात इस शरीर ने आत्मा के साथ किया. अपने विषय भोग के अन्दर इसका उपयोग किया और आत्मा देखती रही, रोती रही, लेकिन शरीर ने सुना नहीं. आज तक संसार देने वाले इस शरीर को लेकर यह संसार प्राप्त किया. इसी शरीर के द्वारा ही पाप किया. इन्द्रियों के माध्यम से पाप उपार्जन किया गया. शरीर के साथ आप ऐसा व्यवहार नहीं करेंगे तो आगे चलकर क्या होगा? ___मैं पूना से आ रहा था. रास्ते में मैंने एक घटना देखी. पूना से बम्बई आ रहा था. रास्ते में लोणावाला का घाट था. घाट उतरने के बाद नीचे खापोली गांव था. वहां एक बहुत बड़ा पेपरमिल है-पिको. उसका मालिक महाराष्ट्रियन ब्राह्मण है. उसने कहा महाराज इस बार आपको मेरे मिल में ठहरना है. बहुत जबरदस्त मिल है. मैंने उसका आग्रह स्वीकार किया कहा कि आऊंगा तो ठहरूंगा. आते समय एक रात्रि के लिए मैं आया. ठहर गया. सुबह का समय था. ठण्डी का समय, उन्होंने कहा-महाराज, आप नाश्ता करके जाए. सुबह बहुत ठण्ड पड़ती है. मैंने कहा - ठीक. आपको पेपर मिल देखना हो तो दिखाऊं. मेरे मन में ऐसा विचार आया, यह सरस्वती का साधन है. परमात्मा की वाणी इस पर लिखी जाती है. परमात्मा के अक्षर शरीर का निवास होता है. यह कैसे बनता है. जरा देख लूं. कभी कोई प्रसंग आया नहीं था. मिल में मुझे ले गया. जहां उसका बहुत बड़ा वायलर था. उसने वहीं से शुरूआत की कि यह हमारा वायलर है. इसके अन्दर कागज की लुगदी तैयार होती है. ___सब कच्चे कागज लाए हैं, सारे इसमें डाल दिए जाते हैं, फिर इसे उबाला जाता है. इतनी भयंकर दुर्गन्धि कि आप खड़े नहीं रह सकते, मैंने दो मिनट वहां रह कर के देखा फिर कहा कि चलें आगे: इसे देख लिया. वहां से आगे गए, दो मिनट भी हम वहां खड़े नहीं रह पाए, आगे उसके अलग-अलग प्रोसिजेज बतलाए, फिल्टर किया हुआ कागज, सीधा बन गया फिर उसको पकाकर आग में डाला तो सीट्स तैयार होने लग गए. जब 402 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy