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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: सेठ को उसी के नौकर के साथ एक ही बेड़ी में रखा गया, एक हाथ नौकर का और एक हाथ सेठ का. अपने लड़के के खूनी के साथ चौबीस घण्टे उसको बिताना, यह कितना बड़ा दर्द का विषय. सुबह से शाम तक उसी के साथ रहना, उसी के साथ बैठना, उसी के साथ सोना. घरवाली सेठानी खाना लेकर आती. सेठ खा लेता, बच जाए बाहर फेंक देता. या किसी जेल के सिपाही को दे देता. यह घटना रोज होती थी. नौकर ने विचार किया. सेठ माल पानी खा ले और बचा हुआ बाहर फेंक दे. हम रोज माल देखते रहें और एक टुकड़ा भी मुझे ना मिले. नौकर ने विचार में गांठ बांध ली कि मौका आने दो. सेठ तो माल पानी खाए और फेंक दे. सेठ को जंगल जाना था. उससे कहा चलो साथ. उसने कहा-सेठ माल पानी तो तुम खाओ और जंगल में तुम्हारे साथ मैं चलूं? ऐसा नहीं हो सकता, मैं तो सोता हूं. बेड़ी तो साथ-साथ में, ऐसी परिस्थिति में नौकर न चले तो सेठ की क्या दशा होगी. वहां सुबह का समय प्रातःकाल यह तो शरीर का धर्म है, बिना निवारण किए शान्ति नहीं मिलती. बहुत विनती किया. नौकर ने कहा बिल्कुल नहीं. मुझे कोई शंका नहीं, तुम को जाना है जाओ.-तू चलेगा नहीं तो मैं जाऊंगा कैसे? सेठ माल तुम उड़ाते हो और मजदूरी मुझे करने को कहते हो. यह घर नहीं जेल है. मेरी बात मानो तो मैं चलूं. ऐसी परिस्थिति में मानना पड़े या नहीं, नौकर को तो घर की रसोई खिलानी होगी, जो स्वयं के लिए आती थी. तो क्या प्रेम से खिलाया. उस खिलाने में उसको आनन्द आया. कैसे भाव से खिलाया, उसी भाव से शरीर को खिलाना है आनन्द नहीं, प्रसन्नता नहीं. मजबूरी है, सेठ आत्माराम भाई को इस नौकर के साथ एक ही बेड़ी में रखा है. एक बेड़ी में आत्मा और एक ही में शरीर, कैसा बन्धन ? आत्मा स्वतंत्र है, शरीर के बन्धन है. शरीर अगर अकड़ जाए तो आत्मा क्या करे, शरीर कहे मुझे मंदिर नहीं जाना मुझे प्रतिक्रमण नहीं करना, अंगूठा दिखाये तो क्या करना परिस्थिति कैसी कि एक ही बेड़ी में हम डाले हुए हैं. थोड़ा बहुत तो शरीर की माननी पड़ती है. तीन दिन तो आपने तप किया लेकिन चौथे दिन कहेगा मुझे खिलाओ नहीं तो साथ नहीं दूंगा. यहां से वहां चलने की ताकत नहीं है मेरे में, खिलाना पड़ेगा.. परन्तु खिलाने में, आहार में प्रसन्नता नहीं, आसक्ति नहीं. आसक्ति को खत्म करने के लिए ही तो उपवास किया जाता है. यही उपवास का लक्ष्य है. उपवास पूरा पारणे में दिखाना चाहिए. तप के समय खाना याद आता है. लेकिन खाते समय उपवास याद नहीं आता है. नहीं खाते समय कभी उपवास याद नहीं आया. परन्तु उपवास में खाना जरूर याद आया. यह अनादिकाल का संस्कार है. इस संस्कार में परिवर्तन लाने के लिए इतना कह रहा हूं. आनन्द तो साधना का, आनंद उपवास का खाने का आनन्द नहीं, भले ही आप बादाम का हलवा खाएं, कर्मबन्ध का कोई कारण नहीं क्योंकि परिणाम शुद्ध है. शरीर के रक्षण - 401 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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