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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: किया न्याय-नीति का उल्लंघन किया, मर्यादा का उल्लंघन किया, आचार से विरुद्ध यदि दुराचार का आश्रय लिया तो नीचे दुर्गति का कुआँ नजर आता है. यही कल्पना हमेशा सामने रखकर सिंहासन पर बैठता हूं, इसलिए पाप मौत की तलवार नज़र आती है और नीचे दुर्गति का कुआँ देखता हूं इसलिए पाप करने से मैं बचा. संसार की कोई भी प्रसन्नता मेरे अन्दर असर नहीं करती. संसार में मुझे किसी प्रकार का आनंद नहीं आता. यही मेरी उदासी का रहस्य है. __ आफिस में जाकर जब आप कुर्सी पर बैठें, पांच दस हजार की कुर्सी लाते हैं, बड़ी आफिस होती है. एयर कन्डीशन आफिस होती है. बैठते समय आप भी यही सोचना. ऊपर लटकती हुई मौत की तलवार कब परलोक पहुंच जाएं, न जाने कुदरत कब क्या सजा दे दे. सावधान, पाप से सावधान, विषयों से सावधान, क्रोध पापों से सावधान, संसार के समस्त भयंकर पापों से सावधान रहना. उसी में सज्जनता है, उसी में कल्याण है. ___ कुर्सी पर बैठते समय नीचे झांक लेना दुर्गति का कुआँ है. अनीति करुंगाा, अन्याय करूंगा, असत्य यदि प्रयोग करूंगा, उसकी मुझे सजा मिलेगी, मेरा जीवन बरबाद हो जाएगा. मरने के बाद उसी दुर्गति के कुंए में मुझे डूबना होगा. यह सजा मुझे मिलेगी. व्यक्ति कुर्सी पर बैठते समय ऊपर नीचे नजर डाल ले, न जाने कब मौत आ जाए, नीचे दुर्गति का कुआँ तैयार है यदि मैंने गलत कार्य किया तो उसकी सजा मुझे मिलेगी. आपके जीवन से सारी प्रसन्नता चली जाएगी. प्रसन्नता सत्कार्यों में होनी चाहिए. संसार के कार्यों में प्रसन्नता कैसी, वहां तो रोना चाहिए. कैसी मजबूरी कि न चाहते हुए भी दुखी रहना पड़ता है. आहार कैसे करना हैं उसका विवेक बतलाया गया है. यह शरीर का धर्म है. परमात्मा ने कभी नहीं कहा कि तुम भूखे मर जाओ. जहां तक तुम्हारी शक्ति है, प्रसन्नता है, प्रयास करो. आहार से मुक्त होने का, उसकी वासना से मुक्त होना, सम्यक् तप माना गया है. सम्यक् अनुष्ठान माना गया है. शरीर को कैसे आहार दिया जाए. परमात्मा महावीर ने बतलाया. शरीर के साथ कैसा व्यवहार करना. बड़ा चालाक है, विश्वाशघाती, दुर्गन्ध से भरा हुआ है. ज्ञानियों ने कहा-ज़रा भी इस से राग रखना नहीं, जैसे घर में नौकर खाते हैं, उसे खाना देते हैं. कपड़ा देते हैं, मालिक वेतन देते हैं, परन्तु काम बराबर लेते हैं. सुबह से शाम तक शरीर आपका नौकर है. सेठ आत्माराम भाई मालिक हैं. शरीर नौकर है, हाथ पांव सारी इन्द्रियों से बराबर काम लेना. खिलाते हैं तो पूरी तरह वसूल करने का. यदि आपने वसूल नहीं किया तो ये नौकर आपको नौकर बना लेंगे, समय बदल चुका है. कैसे इससे व्यवहार करना है. वह मैं आपको समझाऊं आहार तो आप भी करते हैं. परन्तु करने में आसक्ति नहीं, जो मिला ले लिया लेने के अन्दर इतना विवेक होना चाहिए. 399 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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