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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी सिपाहियों को आदेश दिया गया कि इनको इनके स्थान पर बैठा दिया जाए. कएं में न जाने कितने सांप थे. राजाज्ञा सिपाही ने कहा कि आपको यही बैठना पडेगा. मजबूरी थी, आकर कुर्सी पर बैठ गया, ऊपर नंगी तलवार लटक रही थी. कच्चे सूत से बंधी तलवार. हवा में हिल रही थी. जैसे ही कुर्सी पर बैठा तो पूरी कुर्सी लचकदार हिलती हुई. जरा भी अगर बैलेन्स घुमाए तो सीधा नीचे. __ बैठा दिया सामने टेबल पर, बड़े सुन्दर पकवान रखे थे. मफतलाल से कहा -- "करो भोजन." वह भोजन करने के लिए बैठा तो सही, ऊपर देखता है तो नंगी तलवार, हवा के झोंके लगने से हिल रही है. न जाने कब गिर जाए और मौत का कारण बन जाए. मफतलाल उदास हो गया. चिन्ता हो गई. सोचा यह आमन्त्रण मैंने कैसे स्वीकार कर लिया. यह तो मौत का आमन्त्रण है. राजा हैं. इनसे कुछ पूछ नहीं सकता. प्रश्न नहीं कर सकता. राजा का आदेश ही सर्वोपरि है. नीचे झांककर देखा तो बहुत बड़ा गहरा कुआँ है. कुएँ के, बीच में बैठा हुआ. सिपाहियों ने कहा - “भोजन करिए. राजा का आदेश है, आपको भोजन करना है. बड़ी सुन्दर सामग्री रखी है." जबरदस्ती खाने तो लगा, आदेश था. मानना पड़ा. खाना तो खा लिया, उसके बाद जब उसे कुर्सी से उतारा गया, राजा ने पूछा - "खीर कैसी लगी?" “महाराज! बड़ी सुन्दर.” मौत से बचकर आया था. "तुम्हें मालूम नहीं वह खीर तो मैंने भी खाई, उस खीर में तो चीनी डाली ही नहीं थी." "वह तो लूम है, रखा था मैंने तो उसे ही लिया. मौत के भय में चीनी डाली है या नहीं यह भी मुझे मालूम नहीं." “उसके साथ साग कितना सुन्दर था, मालूम है?" / “हां राजन, साग मैंने खाया, बड़ा अच्छा लगा, मैंने तो सब खा लिया." “अरे, उस में मिर्च-नमक ही नहीं था." “वह भी मुझे मालूम नहीं था, मैंने तो खा लिया." राजा ने कहा - "अक्ल आई. नंगी तलवार और मौत का कुआँ देखा, स्वाद भूल गए. मेरा आदेश था, इसलिए खाना खाना पडा. मजबरी थी. जो आया खा लिया. स्वाद का कोई अनुभव नहीं हुआ, अनुभव के नीचे तो मौत छुपी हुई थी.” राजा ने कहा, "मेरी उदासीता का यही कारण है, तुम्हें स्पष्ट कर दिया, समझे? मैं राज सिंहासन पर बैठता हूं तो कल्पना करता हूं, ऊपर मौत की तलवार है. न जाने कब कुदरत की तलवार आ जाए और मेरी मौत हो जाए. सतत सावधान. संसार में जो सावधान रहे, वही आदमी आगे चलकर के अपने लक्ष्य को पाता है. नीचे देखता हूं तो दुर्गति का कुआँ. अगर मैंने जरा भी यहां राज सिंहासन का दुरुपयोगपत 398 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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