SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 426
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % 3Dगुरुवाणी भगवन् ! यह बार-बार जन्म लेना, बार-बार मृत्यु-दुख सहना, बार-बार संसार की सजा लेकर आना, कर्म की मार खाना, जगत का अपमान सहन करना, मेरी यह परिस्थिति कहां तक रहेगी. अन्तर्भाव से कड़े दर्द पूर्वक परमात्मा से उन्होंने निवेदन किया. कहां तक यह जन्म-मरण की क्रिया हमारी चालू रहेगी. अपूर्व वैराग्य भाव से उन्होंने निवेदन किया. एक-एक श्लोक के अन्दर यह भाव भरा है. ___व्यक्ति अगर सुन्दर चिन्तन करें तो संसार में रहकर भी वैराग्य भाव पैदा कर ले, फिर उसे भी आनंद नहीं आएगा. संसार के अन्दर संसार की प्राप्ति में भी आनंद नही आएगा. ___ बहुत बड़ा सम्राट् हमेशा उदास रहता है. चेहरे पर अपूर्व प्रकार का वैराग्य रहता है. बहुत सारे लोग वहां आते हैं, मिलते है. कई लोगों ने ऐसा विचार किया-क्या बात है. इतना बड़ा सम्राट और इसके चेहरे पर प्रसन्नता क्यों नहीं. चेहरे में आनंद क्यों नहीं? जरा सी कुर्सी मिलती और नशा आ जाता है. जरा सी जगत की प्राप्ति हो तो आनंद आ जाता है, चेहरा प्रकट कर देता है. यह इतने बड़े साम्राज्य का मालिक! इस के चेहरे पर आनंद नहीं, प्रसन्नता नहीं, उदासीनता दिखती है. इसका रहस्य क्या है? राजा के पास गए. राजा के मित्रों ने पूछा - "आपको कोई कष्ट है? कोई अप्रिय घटना घटी? कोई पारिवारिक क्लेश है? कोई संताप है? शरीर के अन्दर आपके व्याधि है? क्या कारण है?" राजा ने कहा - “कुछ नहीं, मुझे कोई आधि-व्याधि नहीं, मैं निश्चिन्त हूं." "राजन्! फिर आपके चेहरे पर उदासी क्यों?" मफतलाल ने जब यह पूछा कि - “राजा ! आपके चेहरे पर उदासी क्यों?" राजा ने कहा - “देखो. कल मेरे यहां आना. तुम्हारे लिए बड़ी सुन्दर व्यवस्था की है. वर्षों से तुम मेरे यहां आते हो. मेरे मित्र जैसे हो, कल आकर मेरे यहां भोजन ग्रहण करना, मेरा आमन्त्रण स्वीकार कर लो. उदासीनता का कारण भी कल ही बतलाऊंगा." ___मफतलाल को राजा के यहां भोजन करने का जब आमन्त्रण मिला तो बड़ा प्रसन्न हुआ. राजा ने जब उसे बुलाया तो बड़ा आनन्दित हुआ. जैसे ही दूसरे दिन वह वहां गया. राजा ने पूरी तैयारी कर रखी थी, बहुत बड़ा बगीचा था. उस बगीचे में एक बहुत गहरा कुआँ था. कुएं के ऊपर एक ऐसा सिंहासन बनाया हुआ था, कच्चे बांस का कच्चे सूतों से बँधा हुआ, सामने एक टेबल रख दिया. कुर्सी भी ऐसी कि बैठे और कब गिर जाए, इसका कुछ पता नहीं. जैसे ही मफतलाल आया, राजा का परम मित्र था. राजा ने उसे कुर्सी पर बैठाया. बहुत सुंदर उद्यान था. गर्मी के दिन थे. राजा अपने साथ ले गया कि चलो मेरे साथ चलो. 397 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy