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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी अग्नि प्रकट होगी. मोक्ष कोई बहुत दूर की चीज नहीं है, आपकी मुट्ठी में है. आप प्रयास करिये, ज्ञानियों ने कहा-वह प्रयास बहुत जल्दी पूर्ण बनता है. नवें वर्ष में हम केवल बनते है. कौन कहता है?, मोक्ष नहीं, जरूर है, निश्चित है भले ही यहां से नहीं, दूसरी जगह से ट्रेन मिलती है, दिल्ली से नहीं तो बाहर से. महाविदेह क्षेत्र, जहां वर्तमान तीर्थंकर सीमधर स्वामी विचरण कर रहे है, हमारे भरत क्षेत्र से बहुत नजदीक पड़ता है. यदि अपनी अन्तश्चेतना में परमात्मा का शुद्ध भाषा से अनुराग आ जाए, वीताराग का राग प्रकट हो जाए तो वह राग हमारे जन्म कथानक में खूब परिवर्तन कर देगा. क्योंकि व्यक्ति वासना को लेकर के जन्म ग्रहण करता है. बिना वासना के जन्म मरण की कभी प्रक्रिया नहीं होगी, वासना को लेकर के ही व्यक्ति जन्म लेता है. अन्तर की आत्मा उसे खींच लेती है, दुर्भावना में दुर्गन्ध है, भावना में सुगन्ध है, दोनों विपरीत हैं. पानी तो गटर में बहता है. और पानी यमुना में भी, परन्तु दोनों पानी में अन्तर है. शब्द एक है. गटर का भी पानी कहलाता है. और यमुना में भी पानी कहलाता है. गटर का एक छींटा भी अगर लग जाए तो मन में घृणा होती है. स्वच्छ करने की भावना आएगी. धोकर के शुद्ध किया जाएगा, क्योंकि दुर्गन्ध से भरा है. विकार से भरा है, यदि यमुना में जाए तो वहां स्नान करके स्वयं को शुद्ध मानेंगे. वहां आप में भाव आएगा. ___ वासना और भावना में भी इतनी ही भिन्नता है. वासना गटर के पानी जैसी है. आत्मा को गंदी बनायेगी, आत्मा में एक प्रकार से गन्ध पैदा करेगी, परन्तु दि उसका रूपान्तर हो जाए और सद्भावना आ जाए तो वह भावना भगवान तक पहुंचा देगी. परमात्मा के प्रति एक बार अनुराग पैदा हो जाए तो उसका यह चमत्कार ही सही दिशा में आपको जन्म देगा. यहां से महा विदेह क्षेत्र में ही आपको पहुंचा देगा. वहां जन्म लेने के बाद परमात्मा में यदि प्रशस्त अनुराग रहा, पूर्व का पुण्य रहा तो आठवें वर्ष में दीक्षा और नौवें वर्ष में केवल ज्ञान. ___ कोई दूर की चीज नहीं, नौंवें वर्ष में आत्मा केवल ज्ञान प्राप्त करती है, अपनी आयु पूर्ण करके निर्वाण प्राप्त करती है, मोक्ष प्राप्त करती है. जहां से फिर कभी आवागमन होता ही नहीं. जीवन की अन्तिम मृत्यु को निर्वाण कहा जाता है, जहां से फिर कभी मरण होता ही नहीं, वह अपनी मौत को मार कर के फिर मरता है. वह स्थिति मुझे प्राप्त करनी है. तप का लक्ष्य भी यही है, कहां तक जनमें, कहाँ तक मरेंगे, इस संसार का कभी अन्त आने वाला नहीं. शंकराचार्य ने चरपर मंजरी के अन्दर परमात्मा से निवेदन करके कहा पुनरपि जननं पुनरपि मरणम्, पुनरपि जननी जठरे शयनम्. - न 396 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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