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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: - के लिए माचिस को सुखाना बहुत जरूरी है यदि माचिस सूख जाती है आग पकड़ेगी परन्तु अभी तक आग पकड़ नहीं पाई. हमारा प्रयास यही होता है कि आत्मा को पहले सूखा बना दिया जाए, विषय से आत्मा निर्लिप्त बन जाए, एकदम विषय का रस उसमें से सूख जाए. उस विषय को सुखाने के लिए, ममत्च को सुखाने के लिए, मंगल क्रिया की जाती है. और कोई इसका आशय नहीं. एक बार विषय से आत्मा सखा बन जाए मक्त बन जाए तो तरन्त धार्मिक वत्ति प्रज्वलित हो जाती है. तप की आग आत्मा के समस्त कर्मो का नाश करती है. बहुत दिनों से यही प्रयास चल रहा है. कैसे आपके हृदय में आग पैदा हो. कैसे सारे कर्म जलकर भस्मी भूत बन जाएं. लेकिन वह सफलता आज तक नहीं मिली. मैं बम्बई की तरफ जा रहा था. बिहार में आदिवासियों का एक मुकाम आया. रास्ता बड़ा विकट था. रास्ते में ठहरने का मुकाम भी ऐसा मिला, अन्दर गृहस्थ,, हम बाहर, उसकी चौकी पर ठहरे. चारो तरफ पहाड़ जंगल था, संयोग, पूरी रात बरसात पड़ी बाहर से छींटे आ रहे थे. और कोई वहां स्थान नहीं. किसी प्रकार रात तो निकली. सुबह भी आकाश बादलों से घिरा हुआ, छींटे चालू थे. ____ मैंने सोचा दो तीन घण्टे विश्राम लेने के बाद ही जाएंगे. सामने मैंने नज़र की तो एक आदिवासी औरत, दो तीन बच्चे नाश्ता तैयार करने के लिए चूल्हा जलाये, चूल्हे में थोड़ी लकड़ी डाली, परन्तु आग पकड़ नहीं रही थी. एक घण्टे तक उस औरत ने मेहनत की. मैं सारी घटना अपनी आंखों से देखता रहा. वह औरत चूल्हे में फूंक मारती रही, घण्टे तक प्रयास किया पर लकड़ी सब भींग गई. भीगी लकड़ी आग नहीं पकड़ रही थी. सारा प्रयास उसका निष्फल हो गया. वह औरत तंग आ गई. सारे चूल्हे को खाली करके पड़ोसी के यहां से सूखी लकड़ी लाई, उसके बाद जब आग लगाई तो आग लग गई. ____ मैं रास्ते में यही सोचता रहा एक घण्टे तक उसने मेहनत की, परन्तु आग पकड़ी नहीं, गर्मी नहीं आई, सारा प्रयास निष्फल हुआ. मैंने भी सोचा करीब एक महीना हो चुका है और हर रोज एक घण्टा फूक मारता हूं ताकि अन्दर में आग प्रज्वलित हो जाए, मेरा हर रोज यही प्रयास होता है. परन्तु अभी तक सफल नहीं हो पाया, आग पकड़ती नहीं, क्योंकि विषय से भीगी हुई आत्मा है. जहां तक ऐसे सुखाया नहीं जाएगा वहां तक आग नहीं पकड़ेगी. ___जितनी भी तपश्चर्या है, आत्मा को सुखाने की क्रिया है. विषय का रस सूख जाए, संसार का रस सूख जाए. एक बार यह रस सूख गया तो जरा सी मेरी चिंगारी शब्दों की आग को प्रज्वलित कर देगी. आत्मा निर्मल होकर बाहर आएगी. ये सारी क्रियाएं आत्मा के विषय रस को सुखाने की क्रियाएं है. ताकि अन्दर से सेक्स चला जाए, काम और वासना मर जाए, जगत को प्राप्त करने का जो रस है. वह रस खत्म हो जाए, वह रस यदि सूख जाए तो फिर आप धर्माग्नि प्रज्वलित करिये, उसी समय 395 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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