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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी GAN लें. किसी भी ऐसे पुरूष या किसी पूर्व पुरूष का, वीतरागी उस परमदेव का स्मरण करें, स्मरण औषधि रूप माना गया है. लोग कहते हैं बार-बार नाम लेने का आशय क्या है? एक बार लिया जाए, स्मरण हो जाता है. ज्ञानियों का कथन है-अनादि काल से हमारे अन्दर जो संस्कार हैं उन संस्कारों को दूर करने के लिए, नए संस्कारों को दृढ़ करने के लिए, नाम का स्मरण बहुत अंशों में जरूरी है. आपका कपडा जब मैला हो जाता है यदि आप घर पर धोएं एक बार साबुन लगाएं, दो बार लगायें, तीन बार लगाएं. कितनी ही बार उसे मसलना पड़ेगा. पानी में उसे डुबोना पड़ता है. एक सामान्य कपड़े के लिए, आपको तीन चार बार साबुन लगाना पड़ता है. घर की थाली में यदि दाग लग जाए, उसे साफ करने के लिए उसे कितनी बार मांजना पड़ता है. स्वच्छ करना पड़ता है. तब जाकर के उसमें चमक पैदा होती है, उसका दाग निकलता है. मन के अन्दर अनादि काल से कर्म का दाग लगा हुआ है, विषयों (कषायों) का मैल चढ़ा हुआ है. तभी तो अनेक बार परमात्मा का नाम लेना पड़ता है, तब जाकर आत्मा निर्मल बनेगी, और स्वच्छ बन जाएगी. तप की भट्टी में आत्मा को डाल करके निकाला जाए तो स्वच्छता आयेगी तपश्चर्या तो परम अग्नि है. सोना को शुद्ध करने के लिए आग में तपाया जाता है. तब उसकी मलिनता निकलती है. उसी तरह से आत्मा को स्वच्छ करने के लिए तप की भट्ठी में डाला जाता है, तीन दिन को, पाँच दिन का, महीना भर का, जैसे उसकी शक्ति हो जैसी वह गर्मी सहन कर पाए. उस हाई टेम्परेचर में, तप की गर्मी में आत्मा को स्वच्छ किया जाता है, यह आत्मा को शुद्ध बनने की मंगल क्रिया है. तप को अग्नि की उपमा दी. गांव से बाहर वर्षों के कचडे का यदि ढेर लग जाए. आपने देखा-माचिस से यदि जरा सी उसमें आग लगा दें, घण्टे के अन्दर वर्षों का कचरा जल करके साफ हो जाएगा. हमारे यहां यही व्यवस्था हैं तप की इस परमाग्नि के अन्दर यदि आत्मा को डाल दिया जाए, तो वर्षों से जो कर्म उपार्जन हुआ है, दुष्कर्मो के द्वारा, वासना के द्वारा, अनेक प्रकार से कर्म जो उपार्जन किये, यदि एक क्षण भी उसमें अग्नि प्रकट हो जाए, ज्वाला बन जाए तो समस्त कर्मों का क्षय कर डाले... जहां तक विषय अन्तर में होगा, विषय के अन्तर्गत बहुत सारी चीजें आती हैं, काम और वासना भी उसके अन्तर्गत है, जगत को प्राप्त करने की मूर्छा, वह भी विषय के अन्तर्गत है. विषय में गीलापन होता है, माचिस यदि बाहर रख दें और बरसात की हवा उसे लग जाए, सीलन पैदा हो जाए फिर माचिस लगाते रहें, आग प्रकट ही नहीं होगी. आप कहें कि तीन दिन उपवास किया, लेकिन उपवास में अभी तक गर्मी प्रकट नहीं हुई तो भाव में गर्मी नहीं आई, उत्तेजना नहीं आई, उसके कई कारण हैं, आग को पकड़ने Fan - 394 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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