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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir =गुरुवाणी यहां पर सब प्रकार की अनुकूलता चाहिए, और वहां समस्त प्रतिकूलताओं को हम स्वीकार कर लेते हैं क्योकि संसार से, उसके प्रयत्न से, दो पैसा मुझे मिलेगा. उस प्राप्ति की कल्पना के आनंद में हम सब दुःख सहन कर लेते हैं, वह दुख भी सुख रूप बन जाता है, क्योंकि सामने प्राप्ति की आशा दिखती है. अगर इसी प्रकार व्यक्ति साधना के क्षेत्र में थोड़ा सहन करले, और अपनी दृष्टि से सामने उस आनन्द को देखने लग जाए, कि थोड़ा बहुत सहन करने पर मुझे यह सफलता मिलने वाली है. उसे उपवास का कोई दर्द नहीं लगेगा, संसार के सम्मान प्राप्त न होने का उसे कोई दुख नहीं होगा. चाहे संसार में कितना ही कष्ट आ जाए तो भी सुख का अनुभव करेगा. विचारों के द्वारा वह सुख का ही अनुभव करेगा. ये कष्ट भी मेरे उपकार के लिए आए, मेरे कर्मो का क्षय करेंगें, जो मैंने उपार्जना किया है, उस कर्म की निर्जरा होगी. कर्मों का क्षय यदि मैं समभाव से सहन कर लेता हूं तो मेरा परिणाम अति सुन्दर आएगा. ___जरा सी विचार की भूमिका चाहिए, तो फिर संसार की सारी प्रसन्नता चली जाएगी साधना के क्षेत्र में सर्वप्रथम उसकी यह शर्त है कि संसार से शून्य बन जाए. एक व्यक्ति जब योग मार्ग की साधना के लिए, भारतीय गूढ विद्याओं की जानकारी के लिए, इस देश में आया. किसी महापुरुष से जाकर निवेदन किया कि मुझे साधना का राज मार्ग बतलाइये. ताकि मैं सरलता से अपनी उपासना कर सकूँ, कुछ ऐसी विद्याओं के लिए भी मैं आपके पास आशा लेकर आया हूँ यदि आप योग्य एवं पात्र समझें तो मुझे प्रदान करें. महात्मा ने उसकी परीक्षा ली. व्यक्ति का स्वभाव है. मन बड़ा चंचल रहता है, व्यग्र रहता है. मन की मानसिक व्यवस्था के अन्दर वह स्थिर नहीं हो पाता. अपनी आत्मा को स्थिर करने का प्रयास कभी नहीं कर पाता. उसके लिए सर्वप्रथम उन्होंने परीक्षा ली. वह चीन से आ रहा था, विदेश से आ रहा था, आते ही योगी पुरुष ने पहले ही प्रश्न किया - "रास्ते में तुम बहुत से देश होकर आए हो?" "हाँ." "बंगाल, बिहार भी आए होंगे?" “हाँ. सभी प्रदेश आए." "बंगाल में चावल का भाव क्या है?" बड़ा विचित्र प्रश्न था. आध्यात्मिक क्षेत्र से कोई संबंध नहीं. आते ही योगी ने यही पहला प्रश्न किया, व्यक्ति के स्वभाव से व्यक्ति का चिन्तन, व्यक्ति की मनोदशा का परिचय मिल जाता है. उसी परिचय के लिए उन्होंने एक ऐसा विचित्र प्रश्न किया - “ठीक है, आध्यात्मिक क्षेत्र में जानकारी के लिए आया, मेरे पास कुछ विद्या प्राप्ति के लिए तुम आए. परन्तु बंगाल के अन्दर चावल का क्या भाव है? तुम्हें मालूम है." ne - 392 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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