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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % 3Dगुरुवाणी क्रिया-सिद्धि परम उपकारी परम कृपालु आचार्य भगवन्त श्री हरिभद्र सरि जी ने जीवन का परिचय क्रिया के माध्यम से दिया. जहां तक व्यक्ति अपने विचारों को सक्रिय नहीं बनाएगा, वहां तक वह विचार कभी साधना के लिए सहयोगी नहीं बनेगा. विचारों में पड़ा धर्म जो मूर्च्छितावस्था में है, वह जीवन की जागृति का साधन कभी नहीं बन सकेगा. इसीलिए हरिभद्र सूरि जी महाराज ने इन सूत्रों के द्वारा "प्रतिपन्ना क्रिया चेति" इस सत्र के द्वारा उन्होंने विशेष रूप से आग्रह किया, कि अपनी जानकारी को अपने वर्तन के द्वारा, उसे सक्रिय बनाएं. दवा की जानकारी से आरोग्य नहीं मिलता, दवा लेने से आरोग्य मिलता है. मात्र जानकारी से कोई आत्म-कल्याण होने वाला नहीं. उस जानकारी के अनुसार अपना जीवन व्यवहार हम प्रारम्भ करें ताकि व्यक्ति अपने जीवन की सफलता को प्राप्त कर सके. अभी तक हम स्वयं के मूल्य को समझ नहीं पाए. जहां तक व्यक्ति स्वयं के मूल्य को नहीं समझेगा, वहाँ तक क्रियाओं के मूल्य को वह व्यक्ति कभी नहीं समझ पाएगा. ___साधना बड़ी उतम वस्तु है, साधना के मार्ग में प्रवेश होना साधना के अनुकूल अपने जीवन का प्रारम्भ करना, यह जरा कठिन है, प्रवेश कदाचित, प्रारम्भ हो जाए, परन्तु सम्यक् प्रयास पूर्वक उस परम तत्व को प्राप्त करना बहुत ही दुर्लभ है. फिर भी हम प्रयास करते हैं. इसीलिए उसे धन्यवाद दिया गया, उस मंगल कार्य की अनुमोदना की गई कि व्यक्ति कम से कम प्रयास तो करता है. व्यक्ति प्रमाद के अधीन आश्रित होते हैं, प्रयास भी नहीं करते, जगत की ऐसी कोई चीज नहीं जो बिना प्रयत्न के आपको मिल जाए. एक सामान्य पैसा पैदा करने के लिए मकान छोड़कर के, परिवार का मोह छोड़ करके, दस घण्टे तक हम दुकान या आफिस में बैठते है. भूख और प्यास सहन कर लेते हैं, कदाचित किसी कारणवश बाहर जाना पड़े. शरीर की अनुकूलता न हो तो भी प्रतिकूलता को स्वीकार करके हम धूप में, गर्मी में, सर्दी में, हर जगह जाते हैं. खड़ा रहना पड़े तो खडे रह जाएंगे, अपमान सहन करना पड़े तो अपमान भी सहन कर लेंगे. क्योकि पैसा मिलता है. व्यक्ति जब सामान्य पैसे के लिए भी इतना सहन कर सकता है, तो परमेश्वर को प्राप्त करने के लिए, स्वयं की उस प्रसन्नता के लिए हम कैसे सहन नहीं कर सकते, बिना सहन किये साधना कभी सफल बनने वाली नहीं, परन्तु साधना के क्षेत्र में सहन करने में तकलीफ आती है, रुकावट आती है. 106 391 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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