SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी उत्तर प्रदेश की कुछ दिन पहले समाचार पत्र में एक घटना थीं. पानी को लेकर बहनों में आपस में तकरार हुआ, इतनी बुरी तरह लड़ी लड़कर अपने-अपने घर पर आई पड़ोसी जबरदस्ती उन्हें घर पर लाये, घर पर आकर देखा. उनका छोटा बालक पालने मेरो रहा था, रोते बालक को शान्त करने के लिए क्रोधित माता ने आते ही बालक को स्तनपान कराया. स्तनपान के बाद बालक को उल्टी हुई. मूर्छित हुआ और बालक मर गया. डाक्टर बुलाये. डाक्टर ने कहा-इसको जहर दिया गया है, उल्टी मे जहर है. सारा शरीर नीला पड़ गया. मां ने कहा-ऐसी कोई बात नही हुई सिवाय स्तनपान के बालक को किसी ने कुछ भी खिलाया पिलाया नहीं. बालक हंसता था, प्रसन्न था, जब यह रोने लगा, इसे शान्त करने के लिए मैंने स्तनपान कराया. स्तनपान करने के बाद यह अवस्था हुई. डाक्टर ने कहा- आपके दूध में ही जहर है. आप कहां से आई? मै नल पर पानी भरने गई थी, वहां लड़ने लग गई, उसके बाद आवेश में मै यहां पर आई. बस इसी क्रोध के परिणाम स्वरूप आपका दूध जहर बन गया था. जहर का पान इस बालक को आपने कराया और बालक तुरन्त मर गया, यह छ: वर्ष पहले की घटना है. क्रोधित अवस्था में शरीर के अन्दर जहर उत्पन्न होता है। न्तु यही अगर रूपान्तरित बन जाये, प्रेम का तत्व उसमें आ जाये तो परिणाम अमृत उत्पन्न करेगा. संत कुमार चक्रवर्ती, स्वयं चक्रवर्ती थे- छः खन्ड के मालिक थे. बड़ी प्रचन्ड ताकत थी उनके अन्दर. पूरे संसार का परित्याग करके असार भावना से संयम किया. पूर्वकृत कर्म का दोष, शरीर के अन्दर व्यापक रोग बन गया, इतने सारे रोग अन्दर में आ गये, परन्तु साधना का बल ऐसा प्रचन्ड था. इन्द्र महाराज उनकी सेवा मे आये. साधना के पुण्य से आकर्षित होकर आये. चरणों मे गिरकर निवेदन किया भगवन्, यदि आपका आदेश हो तो आपका उपचार हम कर दें. देवता जिनके उपचार के लिये सेवा में आये. सन्त कमार चक्रवर्ती ने कहा-मेरा ध्यान मेरी आत्मा पर केन्द्रित है, शरीर पर नहीं. यह तो बीमारियों का घर है. शरीर शरीर का काम करता है मैं अपने आनन्द में मरता हूँ. साधना में मग्न हूँ, मुझे कोई शरीर की चिन्ता नहीं, आप क्या मेरा उपचार करेंगे? क्या औषधि करेंगे? हमारे पास स्वयं में वह औषधि है. सन्त कुमार ने अपने हाथ में जरा सा थूक लिया. शरीर पर लगाया, उसका विलेपन किया. कन्चन जैसी काया बन गई. इन्द्र से कहा यह तो मेरी ताकत है इसका विलेपन किया. औषधि का रूप ले लिया. यह अमृत उत्पन्न करता है. - GAR - 389 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy