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गुरुवाणी:
___ मैंने कहा-यह तो बहुत अनर्थ होगा. मैने कहा क्या किया जाये. साहब. और तो कुछ नहीं, यदि इन्दिरा जी को समझाया जाये तो यह प्रसंग बैठ सकता है, बाकी अभी किसी व्यक्ति में कहने का साहस तो रहा ही नहीं. आनन्द जी कल्याण जो पेढ़ी के ट्रस्टी हैं मिले, कस्तूरभाई सेठ भी उस समय मौजूद थे, विचार किया गया इसका क्या निर्णय लिया जाये. बात कुछ नहीं थी वहां पर सामान्य समस्या थी. और सरकार ने देखा कि मौका अच्छा है और यदि एक बार पहला प्रयोग कर दिया जाये तो अन्य मन्दिरों को, अन्य ट्रस्टों को लेने में आसानी हो जायेगी. प्रजा यदि दब गई तो दूसरे मन्दिरों पर भी अधिकार करो.
अहमदाबाद के उस योग्य व्यक्ति को भेजा गया, मेरा और कस्तूरभाई सेठ के पत्र का बड़ी इज्जत करती थीं इन्दिरा जी क्योंकि जीवन में काफी समय तक उनके घर रहीं. जब जवाहर लाल जी आजादी से पहले जेल में थे और उनकी मां जब स्विटरजलैन्ड में बीमार थीं इन्दिरा जी को काफी समय तक कस्तूर भाई के यहां रहना पड़ा, बड़ा अच्छा सम्मान करती थीं उनका.
हमने पत्र भेजा और तुरन्त उन्होंने फोन किया कि यह आदेश नहीं देना और यह बिल नहीं लाना. बच गये. उन्हें समझाया कि इन मामलों में यदि आप हस्तक्षेप करेंगे तो लोगों की भावना को बहुत चोट पहुंचेगी. आगे चलकर के इसकी प्रति क्रिया बड़ी गलत होगी और ये आप को ही सहन करना पड़ेगा. मन्दिरों को स्वतन्त्र रहने दीजिए, उसमें राजनीतिक प्रवेश मंदिर की पवित्रता को नष्ट करता है. ___बात कुछ नहीं होती है, परन्तु उसे विवाद का रूप दे दिया जाता है. तीर्थ स्थान यदि सरकार के अधिकार में जायें तो उसका परिणाम क्या आयेगा? अपना घर नहीं संभाल सकते तो दसरों का घर क्या संभालेंगे. जहाँ ला एण्ड आर्डर भी न हो, प्रशासन जहां पर शिथिल हो और यदि मन्दिरों की व्यवस्था भी आप उनको सौपेंगे तो क्या परिणाम आएगा?
चैरिटी कमिश्नर जब मुझे एक बार मिले, उन्होंने कहा हम मन्दिरों के लिए एक ऐसा कायदा बना रहे हैं.
मैंने कहा-आप क्यों समय नष्ट करते हैं किसी कायदे की जरूरत नहीं हजारों वर्षों तक हमारे पूर्वजों ने इन मन्दिरों का रक्षण किया है? कोई कायदा था? बिना कायदा के, व्यवस्था के, अपनी भावना से इन मन्दिरों को टिका रखा है. बड़े-2 तीर्थ स्थान हों हिन्दुओं के, जैनों के, बौद्धो के. पूर्वजों ने बहुत बड़ा आत्म बलिदान देकर के हर तरह से हमारी संस्कृति के इस प्रतीक का आज तक रक्षण किया. किसी की जरूरत नहीं पड़ी किसी कायदे की जरूरत नहीं पड़ी. आज आपको कायदा दिखता है.
यदि कायदा बना लिया जाये और सरकार के अधिकार में आ जाये तो मन्दिर का कछ वर्षों में एक ईट भी नहीं मिलेगा. बजट पास होगा, तब तक तो मन्दिर ही गिर जायेगा.
/GR
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