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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org : गुरुवाणी: पर गुरुजनों ने नमस्कार की उपादेयता पर प्रकाश डाला. परमात्मा से लेकर अपने माता-पिता तक इस नमस्कार की क्रिया को व्यापक बनाया गया है. प्रथम सूत्र के अन्दर उस महान् करुणामय आचार्य ने आपके जीवन का, व्यवहार का, अध्यात्मिक दृष्टि से, सब प्रकार से इस नमस्कार के द्वारा परिचय करा दिया. अहं के विसर्जन की मंगल क्रिया है, नमस्कार. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " प्रणम्य परमात्मानं समुद्धृत्य श्रृतार्णवात्” धर्म बहुत व्यापक है. इस ग्रन्थ का नाम ही धर्मबिन्दु है परन्तु प्रथम मंगल सूत्र के अन्दर प्रारम्भ करते हुए उन्होंने लिख दिया प्रभु तुझे नमस्कार करके इस क्रिया में मैं आगे बढ़ता हूँ. मेरे मन के अन्दर संसार प्रवेश न कर जाय. लघुतापूर्वक तेरे वचनों को लिखते समय मैं प्रामाणिक रहूँ. मैं धर्म के विशुद्ध स्वरूप का परिचय दे सकूँ और उस परिचय के अन्दर उसकी पूर्णता का परिचय भी बतलाया कि धर्म कितना व्यापक है. बरसात के दिन में कुएँ के अन्दर रहने वाले मेंढक के घर, बाहर के दूसरे मेंढक मेहमान आ गए. आने वाले अतिथि का कुंए के मेंढक ने बड़ा सुंदर स्वागत किया और पूछा कि आप कहां से आए ? अजी मैं तो बम्बई से आया हूं. बरसात का मौसम था. यात्रा में सुविधा रही, मैं आ गया. अरे भाई, यहां आए तो बंबई में आप रहते कहां थे? समुद्र में अरब सागर में. अरब सागर में ? सागर क्या होता है? उस कुंए के मेंढक का एक प्रश्न था. अब क्या परिचय कोई शब्दों से दिया जा सकता है ? धर्म शब्द का परिचय यदि मैं शब्दों से दूंगा तो उसकी व्यापकता आपको मालूम नहीं पड़ेगी. वह शब्दातीत है. शब्दों की पैकिंग में धर्म की यदि मैं सप्लाई करूं तो धर्म का अधूरा ही परिचय मिलेगा. वह आत्मा ही जान सकती है. कई चीजें ऐसी हैं इस संसार में, जो अनुभव के द्वारा ही जानी जा सकती हैं. मैं आपको घी पिला दूं और पूछूं कि घी का स्वाद कैसा है? एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा जो घी के स्वाद का परिचय दे सके. आपको कहना पड़ेगा कि धर्म ऐसा है जिसका शब्दों से परिचय नहीं दिया जा सकता. जब आप साधना के द्वारा उसका अनुभव करेंगे तभी उसका स्वाद आपको मिलेगा. वह शब्दातीत है अर्थात् शब्दों से परे है. शब्द के माध्यम से कहां तक परिचय दिया जाय. उसका तो लिमिटेशन होता है. शब्द तो शरीर है. उसमें रहने वाला भाव वह धर्म की आत्मा है. इसलिए मैं आपसे बतलाता हूं कि उस मेंढक ने परिचय दिया. निःशब्द की भूमिका जिसका परिचय देना था उसका शब्द के माध्यम से या किसी भी प्रकार व्यावहारिक माध्यम से आप जो परिचय देंगे, वह परिचय कभी पूर्ण नहीं बन पाएगा. पर, संसार की वर्तमान में, सबसे बड़ी समस्या है कि हम धर्म का परिचय अनुभव या साधना के बिना देने लग जाते हैं. इसलिये धर्म क्लेश का कारण बन गया है. शब्द में 11 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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