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-गुरुवाणी
बाल्यावस्था की चंचलता होती है और वह दण्ड हमारे हित के लिये होते हैं. बड़ा वात्सल्य होता है. अब समय इतना बदल चुका है कि यदि आप कभी प्रयोग करें तो मुसीबत हो जाय. घर के अन्दर यदि आप कभी डॉट- डपट कर दें, दो थप्पड़ ही लगा दें, उस आत्मा के हित के लिये तो परिणाम क्या होगा? आपको मालूम है-थाली फेंक कर के शेरे बहादुर निकल जाएं. जाओ, मुझे नही रहना है. फौरन घर से बाहर, फिर पेपर में फोटो छापते रहिए. टी० वी० पर उनके दर्शन करते रहिए. परिस्थिति यह है कि मां बाप उनके पाँव पर गिरते हैं कि बेटा माफ कर दे. भूल हुई, अब ऐसा कभी नही करेंगे.
एक जमाना था, हम अपने माता-पिता के पाँव में गिरते थे. आज जमाना इतना बदल चुका है कि मॉडर्न एजुकेशन के प्रभाव से कि माता-पिता को नम्र बनना पड़ता है, कि बेटा भूल हुई, फिर कभी नहीं कहूँगा- चल.
अगर बाल्यकाल से संस्कार होगा तो भविष्य में बच्चे आपके लिये उपयोगी बनेगें. प्रसन्नता से जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति ने यदि बालकों में धर्म संस्कार, नम्रता का संस्कार, नही दिया तो बुढ़ापे के अन्दर रो कर के मरना पड़ेगा रोज प्रभु से यही प्रार्थना करेगा कि अब तू मुझे उठा ले. अब इस संसार में, इस परिवार में नहीं रहना.
यहां पर इस नमस्कार के द्वारा व्यवहार की भी शिक्षा दी जाती है. आध्यात्मिक जगत् में तो इसका बहुत बड़ा महत्त्व है. परन्तु उस नमस्कार का आपके व्यावहारिक और सामाजिक जीवन में भी बहुत बड़ा महत्त्व है. बिना नमस्कार के आपका व्यवहार नहीं चलता. आपके कार्य में रुकावट पैदा होती है. इसलिये मैं आपसे कहूंगा कि हमेशा नम्र बनने का प्रयास करें. आप कहें कि हे भगवान, तेरी बड़ी कृपा है. तेरी कृपा से जीवन मिला. हे भगवान, यह तो तेरी असीम कृपा का ही प्रतिफल है कि मेरा इस जगत् में प्रादुर्भाव हुआ तथा यह समय और यह समृद्धि प्राप्त हुई. कम से कम इतना भी उस परमात्मा के उपकार का स्मरण करेंगे तो जीवन धन्य हो जाएगा. ___ साधुजनों के पास जाकर के यदि भावपूर्वक, गुरुजनों को नमस्कार करें कि आपके द्वारा ही मुझे जीवन का मार्गदर्शन मिला है. मुझे जो ज्ञान का प्रकाश मिला, यह आपकी कपा का ही परिणाम है तथा गरुजनों के अन्तःकरण से प्राप्त इस आशीर्वाद से आपका जीवन धन्य बन जाएगा. यह नमस्कार सामान्य क्रिया नहीं है. बड़ी सुन्दर यौगिक क्रिया है. यह काया को निर्मल करने वाली क्रिया है. यह वचन को पवित्र करने वाली अपूर्व साधना है. इससे वचन में नम्रता आएगी तथा मन विशुद्ध और परिष्कृत बन जाएगा. आत्मा के गुणों का सर्जन बड़ी सहजता से आपको होने लग जाएगा.
इसीलिए मेरा कहना था कि जब कभी भविष्य में आपको आगे बढ़ना हो या आत्मा का विकास करना हो तो यहां जो इस महापुरुष ने लिखा इस नम्रता का जो मन्त्र दिया, नमस्कार के द्वारा यह प्रतिदिन आपको हृदय में रखना है. अपने मस्तिष्क के अन्दर इसे प्रतिष्ठित कर लेना है कि इसके बिना मेरा कोई व्यवहार आगे नहीं बढ़ेगा. इसीलिए यहां
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