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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3-गुरुवाणी: ही नम्रता है. कभी यदि परमात्मा को नमस्कार कर लिया जाए तो ज्ञानियों ने कहा कि भव संसार में हम तर जाएँ. कोई साधु सन्त पुरुष मिल जाए, मंगल भावना आ जाए तो सन्त के चरणों में पाप का प्रक्षालन कर दें. वासना से आत्मा मुक्त बन जाए. न जाने कब किस सन्त के अन्तःहृदय से आशीर्वाद मिल जाए और मेरे लिए आशीर्वाद ही वरदान बन जाए. वह जीवन का परिवर्तन लाने वाला बन जाये, सन्तों का परिचय जीवन में कभी न कभी तो सुगन्ध देकर ही जाता है, इसलिए सत्संग को इतना महत्त्व दिया गया है. सांधुजनों के परिचय को इतना महत्त्व देने का यही तात्पर्य है. आप किसी सेंट की दुकान पर जाकर बैठे तो वहां आपको खुशबू लेने के लिए कोई पैसा देना पड़ता है? सारी उसकी दुकान सेंटिड (सुवासित) होती है. आप दस मिनट बैठे या आधे घण्टे बैठे. बिना पैसे मुफ्त में आपको खुशबू मिलती है. कोई पैसा इसका चार्ज नहीं होता और बहुत ज्यादा आप सेंट की दुकान पर बैठो तो आप भी सेंटिड हो जाएंगे. सुगन्ध आप में भी आ जाएगी. इसी तरह साधु संतों के समागम में बिना पैसे के आपको जीवन सुवासित करने का प्रवचन सुनने को मिलता है. याद रखिए और अधिक परिचय में आएं तो संयमी आत्माओं का संयम आप में भी सुगन्ध पैदा करता है. आपकी भावना में भी वह सदभावना भर देता है, इसीलिए यहां सतपरुषों के परिचय को इतना महत्त्व दिया गया है. यहां हमारे जीवन के अंदर व्यवहार के अंदर इसका बड़ा महत्त्व है. हम लोगों को बचपन में यह संस्कार दिया जाता है और पहले ही हमारे घर में यह शिष्टाचार है कि माता-पिता को नमस्कार करने का - सुबह उठते समय, शाम के समय, आरती के समय एक दिया-बत्ती के समय. जैसे ही बालक को बोध होने लगता है उसे इन संस्कारों से परिचित करा दिया जाता है कि वह माता-पिता, गुरुजन और बड़ों को नमस्कार करें. बाल्यकाल से ही नम्रता की शिक्षा दी जाती है. माता-पिता होकर के यदि आप बालक को धर्म संस्कार से वंचित रहने दें तो उस आत्मा के आप शत्रु बनते हैं, क्योंकि आपने इस प्रकार की शिक्षा नहीं दी, ज्ञान नहीं दिया. माता और पिता ने अपने कर्तव्य का उस समय भान नहीं रखा कि यह बालक आगे चलकर आत्मा में अशान्ति पैदा करने वाला बनेगा. धर्म संस्कार से मुक्त रखने का यह परिणाम फिर आपको ही भोगना पड़ेगा. हमारी भारतीय परम्परा में सर्वप्रथम नम्रता का संस्कार दिया जाता है, आज तो पचास वर्षों से बड़ा परिवर्तन आ चुका है. भले ही दुनिया की दृष्टि में क्रान्ति कहा जाये, परन्तु जीवन के अन्दर यह आपकी भ्रान्ति है. एक जमाना था जब उत्पात करने पर शिक्षा मिलती, दण्ड मिलता. पाँव में गिरते, क्षमा मांगते, बारह बज जाते, भूख लग जाती. नमस्कार करते. बड़े प्यार से प्रेम से बिठाकर भोजन देते. हम लोग प्रतिज्ञा करते उनके सामने, अब कभी यह उत्पात नही करेंगे, बदमाशी नही करेंगे. - For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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