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: गुरुवाणी:
हे अर्जुन, मात्र तू मेरी शरण ग्रहण कर मैं तुझे मोक्ष दूंगा. कोई महापुरुष कभी इस प्रकार से कहेंगे? कभी उनके जीवन में अहंकार का दुर्गन्ध आपको मिलेगा ? आप समझ लीजिये, यदि मैं कहूं कि मेरे पास आओ, मेरी शरण ग्रहण करो, मैं तुम्हें सुख शान्ति दूंगा, तुम्हें सम्पन्न बनाऊंगा, अर्थ से परिपूर्ण करूंगा, ऐसा मैं कहूं तो जगत की दृष्टि में मेरे लिए उनका क्या आशय और भाव होगा.
श्री कृष्ण जैसे योगी गीता में इस प्रकार उपदेश दें, कि पुरुष
"सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज”
यहां मां में शब्द का अर्थ केवल आत्मा से है. इस शब्द का उपयोग आत्मा की अपेक्षा से किया गया है, यहां यदि दार्शनिक उलझनों में आप चले जायें और साम्प्रदायिक दृष्टि से अर्थ करें, तो उसका परिणाम क्या होगा ? अनर्थ होगा यह कि दुनिया के जो भी धर्म हैं, उनको तू छोड़ दे, मात्र मेरी शरण ग्रहण कर मैं तुझे मोक्ष दूंगा. क्या कोई महापुरुष ऐसा कभी बोलेंगे? क्या उनके शब्दों में अहम् कि दुर्गन्धि कभी मिलेगी ? कभी नहीं. हमने उन शब्दों को पकड़ लिया और उनके रहस्य अर्थ को एकदम गौण कर दिया है, अपनी दृष्टि से हमने अर्थ संकलित कर लिया. यही अनर्थ का कारण है.
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दुनिया के हरेक धर्म ग्रन्थ में आपको यह चीज मिलेगी, इसीलिये भगवान ने अपनी अनेकान्त दृष्टि दी. उनके अर्थों को समझने के लिए सापेक्ष भाव चाहिए. दोनों प्रकार का दृष्टिकोण होना चाहिये. गीता में और भी बातें बतलाई गई हैं जो बड़ी सुन्दर हैं.
" स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः "
यह महा वाक्य है श्री कृष्ण का अपूर्व चिन्तन है, इसके अन्दर जीवन का निष्कर्ष, तत्व का निचोड़, इस सूत्र के अन्दर है. परन्तु यदि सांप्रदायिक दृष्टि से अर्थ करेंगे तो अनर्थ पैदा होगा. संकीर्णता आ जायेगी. "दुनिया के सभी धर्म बड़े खतरनाक हैं. अपने धर्म के अन्दर ही मरना तुम्हारे लिए श्रेष्ठ होगा." बड़ा सीधा सा शब्द का अर्थ निकलता है. परन्तु यदि रहस्य में आप जायें तो अपूर्व रहस्य आपको जानने को मिलेगा. कितने उत्तम भाव हैं. ये कि जितने भी आत्मा से भिन्न धर्म हैं, पौद्गलिक धर्म हैं, जगत के अन्दर ये जो भी धर्म हैं, वे वासना जनित हैं. हे अर्जुन! वे सभी तुम्हारी आत्मा के लिए खतरनाक हैं, उनसे बचके रहना.
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स्वधर्मे निधनं श्रेयः. आत्म धर्म के अन्दर मृत्यु प्राप्त करना. वही मंगल है. वही श्रेय है. यह बड़ा सुन्दर इसका अर्थ है. जगत के एक-एक धर्म के अन्दर वर्तमान में ऐसी विकृति आ गई है कि हमारी उदारता चली गई. एकदम सांप्रदायिक संकीर्णता हम में आ गयी. हमारे यहां भी यही स्थिति हुई. अनेकान्त की मान्यता को लेकर चलने वाले, अनेकान्त दृष्टि द्वारा जीवन की साधना करने वाले हमारे जैसे साधु सन्तों में यदि विकार आ जाये. हमारे जैसे साधुओं में यदि यह एकान्तिक दृष्टि आ जाये, संकीर्णता आ जाये कि मुझे
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