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- गुरुवाणी
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जाती है. महाराज कोई सर्वज्ञ तो थे नहीं कि मालूम पड़ जाए क्या बोलेगा? जैसे ही वहां प्रतिक्रमण प्रारम्भ हुआ, और स्तुति बोलने का समय आया.
महाराज ने कहा - "नमोअरिहंताणं" गांव वाला खड़ा था उसने कहा – “नमो अरिहंताणं प्रतिक्रमण में परमात्मा की स्तुति बोली जाती है, अब वह व्यक्ति रसोइया था, धर्म से परमात्मा का उपासक था, खड़ा हुआ और कहा
त्रिपुति बन्धु राधु दाल भात ने साग वली कुण-कुण जीने हंस नवल ने बाग
बदी-बदियों घटियों, साधु जीनो भाग. यहां पसीना छूट गया, तीनों भाइयों को, ये तो हमारी इज्जत गई. इतने भाइयों के बीच में. मुनीम को बुलाया और कहा – “इनको पैसा दो. जो मांगे वही दो, और यहां से रवाना करो.” मुनीम गया कि मेरे सेठ की इज्जत तो रखे, अरे दूसरी तीसरी स्तुति बाकी ही है.
मेहरबानी करो, बेचारा पांव में गिर गया कि इज्जत का सवाल है. मैं सेठ का मुनीम हूं, तुम मांगो वह देने को तैयार हूं. बैठाया गाड़ी में, घर पर ले गया. दिया पांच हजार एक हजार आने जाने का भाडा, और ऊपर से-कहा जो चाहिए और दिल्ली की गाड़ी में बैठा दिया कि तुम को जहां जाना हो जाओ.
क्या दशा हुई, देना तो पड़ा यह हमारी परिस्थिति है. ज्ञानियों ने कहा-हर व्यक्ति मानसिक दरिद्रता से पीड़ित है, जब तक यह उदारता का गुण नही आएगा, वहां तक हम अपने जीवन का आनंद कभी प्राप्त नही कर पाएंगे. वहां तक जीवन का यह मधुर संगीत हम सुन नही पाएंगे. यहां तो परमात्मा ने कहा, पहले ही जीवन में उदारता चाहिए. क्या हम अर्पण करते हैं? बिना अर्पण के आत्मा को तप्ति कभी मिलने वाली नहीं. वह अर्पण की भावना आज कहां है?
दो पैसा देने का सवाल आता है, दस बहाना निकाल देंगे. तुरन्त चेहरा उदास बनता है, प्रसन्नता, परन्तु अर्पण में रुदन. देना पड़े तो हमारी लाचारी, बड़ी मजबूरी बनती है, जब देने में प्रसन्नता आ जाए तो ज्ञानियों ने कहा-वह मोक्ष का जन्म स्थान बन जाए. जीवन का नव निर्माण हो जाए. ऐसी परिस्थिति का निर्माण अपने में करना है. अपने जीवन का इस प्रकार सर्जन अपने को करना है.
दो तीन रविवार से हम इसी विषय को लेकर चल रहे हैं, कल मुझे जाना है और जाने से पहले ही ये कार्य अपने को कर लेना है, नही तो मन में एक प्रकार का असन्तोष रह जाएगा, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, यह हमारा पुरूषार्थ सफल बने, वरदान बने, यह समझ करके कार्य करिये तब तो आनंद आयेगा.
मैंने गत रविवार को कहा-पैसे के लिए हम कितना बड़ा अंधविश्वास लेकर के चलते हैं, मिलता क्या है? कुछ नहीं, सिवाय कर्म बन्धन के. इच्छा और तृष्णा से सिवाय कर्म
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