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गुरुवाणी
बन्धन के
कुछ नही मिलता, तो जीवन के अन्दर यह उदारता अपने को प्राप्त करनी है. आने वाले रविवार के दिन, पर्युषण से पूर्व का रविवार के दिन एक ऐसे महापुरुष का गुणानुभाव करना है, जिसने इस समाज के लिए बहुत कुछ किया, और उसको हम भूल गये, आज से सौ वर्ष पहले आत्माराम जी का जब धर्म साम्राज्य था, उस समय पर चिकागों के अन्दर बर्ड रिलिजियस कांफ्रेस रखा गया. जहां कान्फ्रेंस रखा गया, उस कान्फ्रेंस के अन्दर स्वामी विवेकानन्द भी गये थे. हालांकि उस समय उनको आमन्त्रण नही मिला था, अमेरिका जाने के कारण, लोकचर्चा के कारण वहां के स्थानिक लोगों के आग्रह पर उनको समय दिया गया परन्तु बी. आर. गांधी जो बेरिस्टर थे, महुआ के थे, गुजरात के थे, बड़े माने हुए बुद्धिशाली और सज्जन श्रावक थे. जिन्होंने शत्रुन्जय तीर्थ का केस भी लिया. वहां के ठाकुर के साथ एक अन्याय का युद्ध चल रहा था, जैसे आज तो कई जगह चल रहे हैं. धर्म के नाम से अधर्म चलाना, यह आज हमारा धन्धा हो गया है. फिर साहूकारी हम बताते हैं. नाम के लिए जैन कहलाते हैं और जैनत्व का नामोनिशान नहीं होता. कई गिनने वाले मिलेंगे, खाने वाले मिलेंगे और कहलाने को जैन कहला लेंगे, जब ऐसा प्रसंग आ जाए, नेतागिरी का प्रसंग आ जाए, आगे आने का प्रसंग आ जाए, तो आगे आ जाएंगे.
बी. आर. गांधी जो बैरिटर थे, आत्माराम जीव को जब वहां आने का आमन्त्रण मिला, उन्होंने आमन्त्रण का जवाब दिया. साधु मर्यादा होने के कारण हम विदेश यात्रा नहीं कर पाएंगे, हमारी मर्यादाएं हैं, परन्तु यदि आप अनुकूल होते हों तो एक प्रतिनिधि के रूप में किसी गृहस्थ को हम भेज सकते हैं.
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उसी के लिए बी. आर. गांधी को बुलाकर आत्माराम जी ने जैन दर्शन का परिचय दिया, जैन तत्व को सिखाया, जिस तरह से जा करके परमात्मा के दर्शन की पुष्टि करली, वह सारा आत्मा राम जीव के पास उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया. अमेरिका गए, कान्फ्रेंस प्रवचन
में उनकी ऐसी धूम मची, वहां के बड़े-बड़े विद्वानों ने उनके प्रवचन को सुनें और सराहा.
“सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम्
प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयति शासनम्”
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