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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra इसीलिए कवि ने कहा www.kobatirth.org : गुरुवाणी: " जीना भला है उसका जो जीता है इंसां के लिए। मरना भला है उसका जो जीता है खुद के लिए ॥” जो आत्मा अनेक आत्माओं के कल्याण के लिए जीवित हो, पूर्णतया परोपकार की भूमिका पर जिसका जीवन निर्वाह हो, उस आत्मा का जीवन धन्य है और उसकी मृत्यु भी मंगलमय होगी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परन्तु जो व्यक्ति सिर्फ अपने लिए जीता है, अपना पेट भर कर यह समझ ले कि सारी दुनिया का पेट भर गया है, उस व्यक्ति का तो मरना ही श्रेष्ठ है. अपने लिए नहीं जगत् की आत्माओं के लिए मुझे जीवन जीना है. मेरे जीवन में से अनेक व्यक्तियों को लाभ मिले, यह भावना नमस्कार के द्वारा प्राप्त होगी. व्यक्ति जब लघु बनता है तब उसे प्रभुता मिलती है. इस प्रकार प्रभुता के विचार अद्भुत होते हैं. "लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर।” संत तुलसीदास का कथन है - जहां लघुता होगी वहीं प्रभुता आएगी और यदि पहले ही प्रभुता का नशा बढ़ जाए तो ज्ञानियों ने कहा है कि वहां कुछ मिलने वाला नहीं. वह आत्मा की प्राप्ति से वंचित रहेगी. सारा जीवन धर्म से शून्य रहेगा, कुछ मिलेगा नहीं. भारतीय दर्शन के उन महान विद्वानों ने चिन्तन प्रस्तुत किया कि पश्चिम की आँधी में हम किस तरह से अपनी स्थिरता को प्राप्त कर सकते हैं. आपके सामने सर्च लाइट दिया, ज्ञान का ऐसा दिव्य प्रकाश आपके समक्ष रखा और कहा "अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वतः । नित्यं सन्निहितो मृत्युः कर्त्तव्यो धर्मसंग्रहः ॥” हे आत्मन्! मौत आपके मस्तक पर नाच रही है और न जाने कब आप किस निमित्त से चले जाओ, क्या इसका पता है आपको ? मैं राजस्थान के एक गांव में था. गांव में मां बाप का एक इकलौता युवक पुत्र था. वह बहुत ही विनम्र, संस्कारी तथा मेरा अच्छा परिचित था. बैसाख का महीना था. उसकी शादी का मौका था और संयोग से मेरा आना हुआ. माता-पिता एवं पूरा परिवार इतना हर्षित था कि इस युवक का बड़ी सुन्दर जगह पर संबंध हुआ है. शादी का उत्सव मनाया जा रहा था. शाम को निकासी निकलने वाली थी. इष्ट मित्र, बन्धुगण सब आए हुए थे. पूरे परिवार से घर भरा हुआ था. दूल्हा राजा स्नान करने के लिए स्नानगृह में गया. दस मिनट हुआ, बीस मिनट हुआ और घन्टा भर निकल गया. लोग विचार में पड़ गये कि निकासी का समय है, और अभी तक वर राजा नहीं आये. लोगों ने जाकर के दरवाजा खटखटाया. अन्दर कोई सुनने वाला नहीं. लोग विचार में डूब गए. क्या कारण हो गया ? क्या हुआ? दरवाजा तोड़ा गया और तोड़ करके जब 7 For Private And Personal Use Only प
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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