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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org : गुरुवाणी: आपको मालूम होगा घर के अन्दर इलैक्ट्रिक स्विच आप रखते हैं और यदि स्विच ऑफ कर दें तो लाइट चली जाती है. स्विच जैसे ही ऊपर हुआ, उसका माथा, "गर्वेण तुंगं शिरः" गर्व से, अभिमान से उसका माथा आपने ऊँचा कर दिया, ऑफ कर दिया लाईट चली जाएगी, अन्धकार मिलेगा परन्तु जैसे ही स्विच आपने ऑन कर दिया, स्विच को नमा दिया तो उसमें नमस्कार का चमत्कार देखा तुरन्त लाइट आ जाती है. यह मन का बटन है, मन का स्विच है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन को विपरीत करिये तो क्या बनता है नम मन का स्विच यदि आपने आन कर दिया, औंधा कर दिया, और नमस्कार डिवाइन लाइट. अन्धकार में ज्ञान का प्रकाश आएगा. यह रहस्य है. मन के स्विच को ऑन करके रखिये. नमस्कारपूर्वक हरेक क्रिया करिये. नमस्कार की भावना से प्राप्त करने की उत्कण्ठा रखिये. सारी समस्या दूर हो जाएगी. मन का तनाव दूर हो जाएगा. मन को हल्का बना देगा. ➖➖ नमस्कार की क्रिया में यही रहस्य है. बड़ी प्रसन्नता होगी. अनेक व्यक्तियों की जब सद्भावना मिल जाएगी तो प्रसन्नता तो स्वयं आ जाएगी. यहां भी उस परमात्मा को सर्वप्रथम भावपूर्वक नमस्कार किया गया कि भगवन् तुझे नमस्कार करके मैं इस कार्य के अन्दर प्रवेश कर रहा हूँ. इस लेखन कार्य के अन्दर, जो मुझे जगत् को देना और जो कुछ जगत को दिया जाय, वह विशुद्ध हो, अमृत तुल्य हो. उसमें मनोविकार रूपी विष का प्रवेश न हो जाए. अहं की दुर्गन्ध इन शब्दों में न आ जाए. इसीलिए प्रथमतः नमस्कार की मंगल क्रिया सम्पादित की गयी ताकि जगत् का मार्ग-दर्शन करने की प्रक्रिया में कहीं मनोविकृति न हो. विशुद्ध अमृत तत्त्व इसके अन्दर दिया जाये जिसका पान करके आनन्द का अनुभव हो सके. 6 बहुत सारे ऐसे विकृत लेख आपको मिलेंगे. बहुत गलत मार्गदर्शन मिल जाएंगे. पश्चिम सभ्यता की आँधी इतनी खतरनाक है कि वह साइक्लोन सारी दुनिया के अन्दर वायरस फैलाने वाला है. विषाक्त कीटाणु फैलाने वाला है. उनका एक ही दर्शन है, उनकी एक ही मान्यता है – “खाओ, पीओ, ऐश करो कल तो तुम मर जाओगे." जहां परमात्मा के अस्तित्त्व में विश्वास नहीं है. स्वयं की आत्मा में आत्मविश्वास नहीं, जहां किसी प्रकार का जीवन में अनुशासन नहीं, जहां भोग का अतिरेक हो, वहां यही दशा होगी. मरना तो सबको है. ज्ञानियों ने कहा • मरना भी एक अपूर्व कला है. जिसका सारा ही जीवन धर्ममय होगा. विनम्रतापूर्वक जहां जीने की सुन्दर कला होगी. जहां विचारों का अपूर्व सौन्दर्य होगा, वहां उस आत्मा की मृत्यु भी जगत् को प्रेरणा देने वाली बनेगी, उसका सारा ही जीवन परोपकारमय होगा. - For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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