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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra S 327 ac www.kobatirth.org: गुरुवाणी आप देखते हैं रेलवे ट्रेन की स्थिति को कि अहंकार का सिग्नल जब तक खड़ा रहे तो गाड़ी कभी अन्दर नहीं आती है. यह अभिमान का प्रतीक है, ट्रेन विचार करती है कि मुझे क्या गर्ज मैं अन्दर आऊँ कोई स्वागत नहीं, सम्मान नहीं यह अभिमान का प्रतीक है. ट्रेन बाहर रुक जाएगी. परन्तु जब सिग्नल यह विचार करने लग जाय कि इसके आये बिना मेरा कोई मूल्य नहीं एवं इसके न आने से यहां श्मशान जैसी शान्ति रहेगी. यहां कोई चहल पहल नहीं होगी. इसके यहां आने से ही यहां की रौनक बढ़ेगी और लोगों में प्रसन्नता होगी. विचारपूर्वक जब सिग्नल डाउन होता है, नम्र बनता है, झुक जाता है और तब ट्रेन अन्दर आती है. - - आप विचार कर लेना यह मस्तक सिगनल जहां तक आपका ऊपर है वहां तक न तो परमात्मा प्रवेश करेंगे न गुरुजनों का आर्शीवाद अन्दर आएगा. परन्तु यह मस्तक सिगनल जैसे ही डाउन हुआ नमस्कार – सहज के अन्दर आशीर्वाद आपको प्राप्त हो जाएगा. परमात्मा की कृपा आपको प्राप्त हो जाएगी. उनके व्यक्तियों की सद्भावना आप प्राप्त कर पाएंगे, पहले इसे सीखो. यह अकड़ चुका है. ऐसा प्रयत्न करें कि वह नम्र बन जाऐ. नम्रता में अपूर्व शक्ति है, नम्रता अथवा विनयशीलता धर्म प्राप्ति का द्वार है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - "धम्मस्स मूलं विनयः” परमात्मा महावीर का कथन है कि धर्म का जो मूल है, वह विनय है और विनय के द्वारा ही व्यक्ति प्रेम का साम्राज्य स्थापित कर सकता है. जगत के प्राणीमात्र के अन्तस्तल में अपना स्थान बना सकता है. इसमें सारे क्लेशों और कटुता का नाश करने की अपूर्व क्षमता समाहित है. नम्रता के द्वारा हम अपनी क्षमा की भावना प्रकट करते हैं. अपनी तिक्तता विसर्जित करते हैं. अपने वैर भाव को हम तिलांजलि दे देते हैं. अनन्त काल के संसार का भेद इसी नम्रता की क्रिया के द्वारा ही हम प्राप्त करते हैं. इसीलिए संसार के प्रत्येक धर्म के अन्दर सर्वप्रथम नमस्कार को महत्त्व दिया गया है. मंदिर जाएं, प्रभु का दर्शन करें, रास्ते में सन्त मिल जाएं, गुरुजन मिल जाएं तो नमस्कार अवश्य करें. घर के अन्दर अपने माता-पिता या बड़े भाई या जो भी घर में बड़े हैं, सर्वप्रथम व्यवहार में भी नमस्कार करें. कहीं पर जब आफिसर के पास काम कराने जाये तो वहां भी पहले ही नमस्ते, नमस्कार करते हैं. बड़ी अपूर्व क्रिया है. विलक्षण चमत्कार इस नमस्कार की क्रिया में अन्तर्हित है. शुद्ध भाव से परमात्मा को किया हुआ नमस्कार मोक्ष का कारण बनता है. हमारे यहां प्रतिक्रमण सूत्र में पाप की आलोचना की जो सबसे श्रेष्ठ क्रिया है, उसमें स्पष्ट कह दिया गया है "इक्को वी नमुक्कारो जिनवर वसहस्स वद्धमानस्स । संसार सागराओ अ तारेई नरं व नारिं वा ॥ 5 संसार के इस सागर से आत्मा तैरकर किनारा प्राप्त कर लेती है ऐसी अपूर्व क्रिया है इस नमस्कार में. इस लिए ग्रन्थकार ने सर्वप्रथम नमस्कार को महत्त्व दिया है. For Private And Personal Use Only 元
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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