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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी दस मिनट के बाद जब उनका बाहर आना हुआ तो स्वामी जी ने कहा कि आपके प्रश्न का उत्तर मैंने दे दिया है. यदि आप जाना चाहें तो जा सकते हैं. वह दार्शनिक घबरा गया कि बड़ी विचित्र बात है. कोई चर्चा नहीं हुई, कोई वार्तालाप नहीं हुआ. मैंने तो अपना प्रश्न उपस्थित किया और आकर उन्होंने जवाब दे दिया कि मैंने प्रश्न का उत्तर दे दिया है, यदि आप जाना चाहें तो जा सकते हैं. __उसने कहा कि महात्मन्, मुझे जरा स्पष्ट रूप से समझाइए, आपके कहने के आशय को मैं समझ नहीं पाया हूँ, आपके कहने का अभिप्राय क्या है? स्वामी जी ने कहा कि उस कप और रकाबी से मैंने आपके प्रश्न का जवाब दे दिया है. आपको यह मालम होगा कि जब मैंने कप में चाय डालनी शुरू कर दी, कप भर गया, रकाबी भर गई और भरने के बाद जो कुछ मैंने डाला वह सब बिखर गया, नीचे गिर गया -- आपकी यही स्थिति है कि आपका दिल और दिमाग इतना भरा हुआ है जिस प्रकार यह कप और रकाबी. यहा आते ही वह तो बिखरने लगा, इस तरह शब्दों से बिखरने लगा कि मैं बड़ा दार्शनिक हूँ, सभी दर्शनों का मुझे परिचय है. सारी दुनिया का भ्रमण किया है, बहुत सारे विषयों का ज्ञान मेरे पास है. आप तो यहां आते ही आपके कप और रकाबी में से बिखरने लगे, शब्दों के द्वारा बाहर गिरने लगे. मैंने सोचा यदि इसमें मैं ज्यादा डालूंगा तो वह भी बिखर जाऐगा. क्या आप मेरी बात समझ गये? उस योगी ने कहा- पहले आप अपना दिल और दिमाग खाली करके मेरे पास आयें तब यहां से आप कुछ पा सकेंगे. अत: नमस्कार की क्रिया से दिल और दिमाग को खाली किया जाता है. अहम से आत्मा को शून्य बना लिया जाता है. कुछ प्राप्त करने के लिए जा रहा हूँ, और बिना नम्रता के कभी किसी वस्तु की प्राप्ति नहीं होती. प्रवचन में से जो कुछ आपको प्राप्त करना है उसकी सर्वप्रथम प्रक्रिया नमस्कार की है जिससे यह ध्वनित होता है कि मैं कुछ नहीं है. मेरे पास कुछ नहीं, मैं स्वयं कुछ नही. मेरा कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है. जो अस्तित्व है वह आत्मा का है. परमात्मा की कृपा का परिणाम है. उनके अनुग्रह से इसकी प्राप्ति हुई न कि मेरे स्वयं के प्रयत्न से. यहां इस नमस्कार का इसीलिए महत्त्व है, नहीं तो आत्मा प्राप्ति से वंचित रह जाऐगी. इसी प्रकार आप जब नल के पास जाते हैं तो बर्तन कहां रखते हैं - नल के ऊपर या नीचे? नल के नीचे तभी तो वह पूर्ण बनता है, भर जाता है, यहाँ भी जो कुछ ग्रहण करना है वह नम्रतापूर्वक ही ग्रहण किया जा सकता है. अभिमान के सिर पर आरूढ़ होने पर यदि आप कुछ लेना चाहें तो आपको कभी कुछ नहीं मिलेगा. पूरा जीवन आपका निष्फल चला जाऐगा. अहंकार जीवन का सर्वनाश करने वाली चीज है. क्रोध यहीं से जन्म लेता है, मान यहीं से है. इतिहास में बहुत से व्यक्तियों का जीवन आपको दृष्टिगत होगा जिनको दर्प ने काल-कवलित कर दिया. - ना For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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