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-गुरुवाणी
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करता है. इसीलिए क्रिया के अन्दर नमस्कार का महत्व रखा, नमस्कार क्रिया के अन्दर अपने अहंकार का विसर्जन किया जाता है. मन से संसार को निकालने का प्रयास किया जाता है और नमस्कार के द्वारा आत्मा इस प्रकार की योग्यता एवं पात्रता प्राप्त करती है. ज्ञानियों ने कहा है कि कोई भी वस्तु प्राप्त करने से पूर्व, पहले स्वयं को खाली करना पड़ता है. यदि आप मेरे पास लोटे में छाछ भर के लाएँ और दूध की याचना करें तो मैं दूध रखूगा कहां, लोटा तो छाछ से भरा होगा. मन के लोटे में यदि आप गुरुजनों के पास संसार का छाछ भरकर ले जाएँ और फिर कहें कि परमात्मा का अमृत इसके अन्दर आप भर दीजिए तो कैसे समायेगा?
एक बहुत बड़ा समझदार दार्शनिक किसी महान योगीपुरुष के पास गया. विदेश से आया था और उसने सुना था कि भारत में बड़े महान योगीपुरुष रहते हैं. वह चीन से इस देश में आया था. हजारों वर्षों तक इस देश का चीन के साथ सांस्कृतिक सम्बन्ध रहा है. वह दार्शनिक महान् योगीपुरुष के पास दर्शनार्थ गया. भारतीय परम्परा से उसका कोई विशेष परिचय नहीं था. योगीपुरुष के दर्शन के पश्चात् वह उनके पास बैठ गया. __ योगीपुरुष ने पूछा, “कहो कैसे आना हुआ" ? पहले तो उसने अपना परिचय दिया कि मैंने बहुत अभ्यास और अध्ययन किया है, दुनिया के हरेक धर्म और दर्शन का बड़ी गहराई से अध्ययन किया है और मैंने सुना है कि भारत के अन्दर महान योगी हैं, इसलिए कछ योग की प्रक्रियाओं को जानने तथा उन रहस्यों को समझने के लिए मैं हिन्दुस्तान आया हूँ, यहां आपका नाम सुना, सो दर्शन की इच्छा बलवती हुई और सोचा शायद यहां कुछ मिल जाये, अस्तु प्राप्ति की अपेक्षा से आया हूँ, मैं सारी दुनिया में घूम चुका हूँ, बहुत गहन अभ्यास किया है, बहुत सी भाषाओं का मैं ज्ञाता हूँ और दुनिया के हरेक दर्शन के विषय से मैं पूर्णतः विज्ञ हूँ.
उसके कथन में अहंकार की दुर्गन्ध थी, अपनी जानकारी का प्रदर्शन था कि, मैं बहुत कुछ जानता हूँ, योगिराज कुछ नहीं बोले, बड़े गम्भीर रहे. अन्दर जाकर केतली में चाय लेकर आये तथा कप और रकाबी भी लेकर आये. योगिराज ने कहा कि मेरे आतिथ्य को स्वीकार करें. यह भारतीय शिष्टाचार की परम्परा है. इस प्रकार कहकर हाथ में कप और रकाबी दे दिया और केतली लेकर के योगीपुरुष ने चाय डालनी शुरू कर दी.
कप भर गया, रकाबी भर गई परन्तु वह तो डालते ही गये. वह आने वाला व्यक्ति विचार में डूब गया कि ये कैसे दार्शनिक हैं; कैसे विद्वान हैं कि इन्हें इतना भी मालूम नहीं कि नीचे बिखर रही है और उसके छीटें मेरी पैंट को बिगाड़ रहे हैं. उसने बड़ा संकोच किया और कहने लगा - स्वामी जी बस कीजिए, यह तो पूरा भर गया है, कप और रकाबी भर गया है. मेहरबानी कीजिए.
सुने ही नहीं, वह तो पूरा डालते रहे. पूरी केतली उन्होंने खाली कर दी. सब नीचे फैल गया. चाय फैल गयी, छींटे से उसकी पैंट भी भीग गयी. वह मौन रहा -- स्वामी जी अन्दर चले गये.
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