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गुरुवाणी:
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सकते हैं, यह मृत्यु लोक जंकशन है. कहाँ आपको जाना है, उसकी तैयारी आपको करनी । है. अगर शुभ भाव आ जाए, परिणाम में शुद्धता आ जाए, दयालु बन जाएं हृदय से, और परनिन्दा के भाव से आत्मा का रक्षण कर लें, सदाचारी आचरण का चालन करें, तो आत्मा निश्चित देवगति में जाती है.
दवाव से मुक्त होने वाली आत्मा के लिए गति ही सद्गति है. यदि सज्जन और सरल बन जाएं. हृदय में सरलता आ जाए. वैर विरोध की भावना चली जाए. तो ज्ञानियों ने कहा-सरलतम मनुष्य गति आती है. फिर यदि माया का सेवन किया. धर्म के नाम से यदि पाप किया गया. धर्म के नाम से धन बटोरना. धर्म के नाम से दुनिया भर का पाप करना. धर्म के नाम से न करने योग्य दष्कत कार्य को कर लेना. ज्ञानियों ने कहा-पश योनि में ले जाएगा..
जीवन में दुराचार को आश्रय देना, पाप में प्रसन्नता प्रकट करना, पाप को पुष्ट कर लेना, नरक ले जाने वाली वस्तु है. कहां जाना है? उसकी तैयारी हमारे अन्दर होनी चाहिए जीवन के अन्दर वही तो प्रेरणा लेनी है. प्रबंधन के द्वारा यही तो सीखना है यही जानकारी प्राप्त करनी है. विचार के अन्दर एक समझदारी आ जाए, कुशलता आ जाए, तब तो जीवन धन्य बन जाए. वह कुशलता हमारे अन्दर आती नहीं. यहां पर हमारे सूत्रकार ने निर्देश दिया है.
अवर्णवादश्च साधुषु। घड़ी ने तो चार बजाकर आपको काफी जगा दिया. बाद में आप फिर देखेंगे. घड़ी तो बारह बजे तक आपको पुकार-पुकार कर चिल्ला-चिल्ला कर फिर जगाएगी. अंतिम समय में तो कह देगी मैं बारह बजा दूं? या तो बारह व्रतधारी श्रावक बनो, नहीं तो तुम्हारे बारह तो बजने ही वाले हैं. __व्रत नियम और अनुष्ठान के द्वारा जीवन को अनुशासित बनाएं. उसके अन्दर सर्वप्रथम अनुशासन आपकी वाणी पर आना चाहिए. जो अपना विषय चल रहा है. इसी विषय के अन्तर्गत ये सब विचार किया गया. क्यों मैं अवर्णवाद बोलू? किसी की निन्दा से मुझे क्या लाभ? किसी की आलोचना करने से मुझे क्या मिलेगा? किसी आत्मा की आलोचना से मन की वासना को प्रसन्नता मिलेगी. अन्दर से आत्मा तो रुदन करेगी. लाभ में क्या लाभ? कुछ नहीं नुकसान है. सिवाय कर्म बन्धन के, प्रेम नष्ट होगा, प्रीति नष्ट हो जाएगी, सद्भावना खत्म हो जाएगी. परमात्मा की प्रसन्नता से मैं वंचित रहूंगा. मिलेगा क्या? मेरी सारी साधना पानी में गई. इतनी सुन्दर खेती की और यदि बाढ़ आ जाए, सारी खेती साफ.
सुन्दर मकान बना लें. बहुत सुन्दर अन्दर साज-सज्जा करें, यदि आग लग जाए सब साफ. यहां पर निन्दा के अन्दर शेष गुण नष्ट हो जाएंगे. इस जगत् के प्रवाह के
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