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-गुरुवाणी
अन्दर एक बार यदि बाढ़ आ गई, आज तक की सारी कमाई बाढ़ के अन्दर साफ हो । जाएगी. मिलेगा कुछ नहीं.
भगवान ने कहा - सावधान रहें. परनिन्दा के भाव से बचने का प्रयास करें.
अवर्णवादश्चसाधुषु. ऐसे साधु पुरुषों की निन्दा से भी स्वयं का रक्षण करें. हमारे यहां साधुता की बड़ी सुन्दर व्याख्या दी है. मात्र पेट भरने के लिए निकले हों तो ऐसी साधुता को ढोंग कहते हैं. ऐसी साधुता को स्वीकार नहीं किया गया. साधुता किस प्रकार की आना चाहिए. यहां तो शिक्षा है, ऐसे साधु पुरुषों का अनुमोदन करना, उनके गुणों से अनुराग प्राप्त करना. कभी भूल के साधुपुरुषों के अवर्णवाद बोल करके अनर्थ उपस्थित नहीं करना. वह साधुता किस प्रकार की चाहिए? व्यवहार में तो कहा जाता है बड़ी सस्ती आज की हमारी साधुता है.
साधु जीवन कठिन है, चढ़ना पेड़ खजूर,
चढ़े तो रस भरपूर है पड़े तो चकना चूर। इस साधु जीवन के अन्दर संयम श्रेणी में, उत्तरोत्तर आत्मा का विकास प्राप्त कर ले. अनुभव अमृत का रस पान करे. हमारे यहां ऐसे कई आचार्य एक जरा सी वासना को लेकर जीवन से पतित हो गये. जरा सी उत्तेजना में आकर जीवन से भ्रष्ट हो गए.
चण्ड कौशिक नाग पूर्व के अन्दर साधु था. महान चरित्रवान साधु था. अचानक एक दिन ऐसा प्रसंग आ गया. भिक्षा के लिए जा रहे थे, उनके साथ उनके शिष्य भी थे. रास्ते के अन्दर एक छोटा मेढक. प्रमादवश पांव के नीचे आया, दबकर मर गया. शिष्य ने देख लिया गुरु भगवान से निवेदन किया- भगवन्, आप भिक्षा के लिए जा रहे थे, आप के प्रमाद से, यह आप के पांव से नीचे कुचला गया. मर गया. जो आलोचन प्रायश्चित हो भगवन! आप करलें.
शिष्य ने सावधान किया, जगाया. परन्तु वासना ऐसी थी, उपेक्षा कर दी. ध्यान नहीं दिया. भिक्षा लेकर आते समय उपाश्रय में उसने जगाया, ताकि भिक्षा के साथ इसकी भी आलोचना कर लें. दोपहर के समय पडिलेहन के समय भी शिष्य ने सावधान किया. ध्यान नहीं दिया. राखी के समय शिष्य ने फिर से अपने गुरु को जगाया ताकि मेरे गुरु महाराज का यह दोष उनके लिए अनर्थकारी न बन जाए. चित्तपूर्वक इसकी शुद्धि कर लें.
प्रतिक्रमण का समय था, उपाश्रय में, धर्मद्वार में, पूर्ण अधकार था. उस अधकार के अन्दर शिष्य ने जैसे ही विनयपूर्वक कहा-भगवन्, आप के प्रमाद से इस प्रकार की यह चीज हो गई है. किसी तरह से आप आत्म शुद्धि कर लें. यह प्रतिक्रमण है, प्रायश्चित की क्रिया है. इसके अन्दर प्रभु से प्रार्थना करके आप शुद्ध हो जाएं.
IMAR
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