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-गुरुवाणी =
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व्यक्तियों की एक मानसिकता रुग्ण होती है. चिड़चिड़ापन आ जाता है. कमजोरी का यह लक्षण है. विचार शुन्यता आ जाती है. बात-बात के अंदर क्रोध आ जाता है.
कोई भी सुंदर वस्तु उस समय प्रिय नहीं लगती. ऐसी परिस्थिति में रानियों के चन्दन घोटने में जो आवाज पैदा हो रही थी, जो चूड़ियों की आवाज निकल रही थी, कवियों की कल्पना में जो एक अलग प्रकार का संगीत था, नेमि राजर्षि के जीवन के अंदर वह ध्वनि विषम बन गई. कष्ट देने वाली बन गई.
राजा ने आवाज देकर कहा "यह क्या हो रहा है? वज्रपात बन्द करो, इस आवाज को. मुझे जरा भी प्रिय नहीं लग रहा है. अशान्ति बन्द कर दो." रानियों के पास विवेक था. विवेक पूर्वक उन्होंने विचार किया. राजा की शान्ति भंग हो रही है. इसलिए हमें ये सारी चूडियां निकाल देनी चाहिए. एक-एक करके सारी चडियां निकाल दी. सौभाग्य का प्रतीक मात्र एक चूड़ी हाथ में रखी. बाकी सारी चूड़ियां निकाल दी. आवाज बन्द हो गयी. जो संघर्ष था, बन्द हो गया.
दो मिनट के बाद राजा ने आश्चर्य से पूछा – “आवाज बन्द कैसे हो गई?" बीमार व्यक्ति स्वभाव से बालक जैसा बन जाता है. पूछा - "क्या मेरे लिए चन्दन घिसना बन्द कर दिया है, जो मेरे उपचार का साधन है?"
रानियों ने कहा - "नहीं महाराज! आपकी अशान्ति के लिए हम लोगों ने सारी चूड़ियां निकाल दी, चन्दन तो घिसा जा रहा है. मात्र एक-एक चूड़ी हाथ में रखी है, जिसमें कोई घर्षण नहीं, कोई आवाज नहीं. इतना रानियों का कहना था. राजा ने उसी समय उस पर दार्शनिक दृष्टिकोण से विचार किया, तात्विक दृष्टिकोण से उस पर चिन्तन किया. एक में शान्ति और अनेक में अशान्ति.
जहां ये चूड़ियां अनेक थीं वहां संघर्ष था, क्लेश था. उसमें कर्कशता थी. परन्तु एक-एक चूड़ी हाथ में हैं, इसीलिए कोई अशान्ति का कारण नहीं, कोई संघर्ष नहीं. किसी प्रकार का क्लेश नहीं, कितनी परम शान्ति है. एकत्व भाव के अन्दर कितनी शान्ति है. वही तात्विक चिन्तन उन्होंने अपने लिए बड़े सुन्दर ढंग से किया. मन मे एक संकल्प किया, अगर इसी प्रकार मैं भी एकत्व भावना में स्थिर बन जाऊं. परिवार से, संसार से मुक्त होकर, एकत्व भाव के अन्दर एकाकी अवस्था के अन्दर आत्म चिन्तन करूं? साधना की गहराई में डूब जाऊं. कितनी शान्ति मिलेगी. परम शान्ति का मुझे अनुभव होगा. जैसे ही इस बीमारी से मैं मुक्त बन जाऊं, उसी समय जाकर के एकत्व भावना में आत्मा को स्थिर करने के लिए मैं सन्यास ग्रहण कर लूंगा. दीक्षा ले लूंगा.
यह मात्र मंगल भावना थी. भावना तो आप जानते हैं, बड़ा सर्जन का चमत्कार करती है. शुभ भावना के परमाणु रोग का प्रतिकार कर गए. भावना ही उनके लिए उपचार बन गई. वही एक प्रकार की मेडिसिन बन गई. सद्भावना के द्वारा ऐसा प्रबल पुण्योपार्जन किया कि रोग का प्रतिकार हो गया. और अपने विचार में हढ रहे. निकल गए संसार से.
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