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गुरुवाणी
एकमात्र चूड़ियों के निमित्त से उस आत्मा ने ऐसा वैराग्य प्राप्त कर लिया. जीवन की परम शान्ति में जीवन को स्थिर कर लिया. सारी अशान्ति चली गई. एक में आवाज नहीं, जहां एक से दो पैदा हुए, घर्षण पैदा हुआ. चूल्हे के अन्दर यदि अगर आप एक लकड़ी डालते हों, आग बहुत मुश्किल से पकड़ती है. यदि दो लकड़ी आपने वहां सजा दी, तो आग पकड़ लेगी, यदि दो चार पांच लकड़ियों को सजा दिया जाए, चूल्हे के अन्दर जमा दिया जाए. कैसी ज्वाला प्रकट होती है.
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"अयमेव संसार" संसार में भी इसी प्रकार की विचित्रता है. आप अनुभव करना, जहां तक आप अकेले थे. कैसी परम शान्ति थी. कोई अशान्ति थी ? माता-पिता की पुण्य छाया पूरा परिवार प्रेम संपादन किया था. आपका जीवन बड़ा निर्दोष था. कोई पाप, कोई वासना आकर सताती नहीं थी. परन्तु जैसे ही एक से दो हो गए विचार का घर्षण शुरू हुआ. दो से चार जैसे ही पैदा हो जाए, फिर देखिए आप घर तमाशा. फिर तो घर ज्वाला
थी,
बन जाएगा.
इसीलिए अध्यात्मिक दृष्टि से कहा गया. कदाचित ऐसे कर्म के कारण, आप संसार से मुक्त न हों, कदाचित् आपको विचारों में अशान्ति हो, संघर्ष हो, रहने की ऐसी अपूर्व कला आप प्राप्त कर लें कि रहें संसार में परन्तु मनके विचार से आप अलिप्त बन जाएं. विचार में एकत्व भावना आ जाएं. मन के विचार से सब में रहकर और सबसे अलग बन जाएं. वहां पर कोई अशान्ति प्रवेश नहीं करेगी. मन को ऐसा शक्तिमान बना लिया जाए. विचारों द्वारा ऐसा पुल लगा लिया जाए जिससे संसार की गर्मी या उत्तेजना असर ही न करे. हम कभी उस तरह का प्रयास ही नहीं करते हैं.
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सामायिक की मंगल क्रिया इसी तत्त्व को प्राप्त करने के लिए है. ध्यान अवस्था के अन्दर उस ध्येय को प्राप्त करने के लिए हमारे पास ये उपाय बतलाए गए. हमारे पूर्वाचार्यों ने, ऋषि मुनियों ने चिन्तन के द्वारा मार्ग-दर्शन दिया है. घड़ी एक बजाकर के आपको जगाती है परन्तु जगते ही अपना मान करके चलते हैं, यह मेरा वह मेरा है किसी का, जो आप अपने साथ लेकर आए वह भी आपका नहीं. जो शरीर जन्म से मां के गर्भ से आप ले करके आए वह भी साथ छोड़ दे तो बाहर के आ जाने वाले परिवार के लोग आपके साथी बन सकेंगे? जो आंख, पांव, जीभ आपकी सारी इन्द्रियां जो आप जन्म से साथ लेकर आए, कितना खिलाया पिलाया और इनके अनुकूल रहकर आपने कितनी सेवा की वृद्धावस्था आने के बाद आंख की रोशनी बन्द हो जाती है, देखने में बड़ी मुश्किल होती है. कान के अन्दर बैटरी लूज हो जाती है. दांत सब चले जाते हैं. विश्वासघात कर जाते हैं. जो हाथ मनों वजन उठा सकता था, एक किलो उठाने को तैयार नहीं. पांव हड़ताल कर देते हैं. दो फुट भी चलना अपने हाथ में नहीं रहता. उठाकर ले जाना पड़ता है. पेट जो आपका गोदाम है. दरवाजा खुल जाता है. कोई माल पचता नही. ऐसी परिस्थिति में कभी आपने चिंतन किया है कि जो मैं जन्म से लेकर के आया, मां के गर्भ से जिनको
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