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-गुरुवाणी
स्वयं के विषय में ही जानकारी प्राप्त करनी है. मैं स्वयं क्या कर रहा हूं वही देखना है. परन्तु व्यक्तियों की आदत बड़ी गलत हो गई. परनिन्दा का स्वाद इतना हमारे अन्दर पहुंच चुका है. गहराई में, उसे एक दम निकालना इतना सरल नहीं है, यदि अभ्यास किया जाए तो ये साध्य हैं. संभव हो सकता है. इस पाप से इस अपराध से मैं स्वयं का रक्षण करूं.
बहुत कुछ इसमें कहा गया. क्रोध, मान, माया, लोभ इन सारे पापों को जन्म देने वाला उनका जन्म स्थान है निन्दा की आदत, पर निन्दा, पर चर्चा, विकृत कथा. जिससे आत्मा का कोई सम्बन्ध नहीं. जिसके अन्दर आत्मा या परमात्मा की कोई चर्चा नहीं. इन विषयों के अन्दर समय नष्ट कर देना. यह समय की हत्या है. समय का घोर दुरुपयोग है. समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता. वह निरपेक्ष होता है. समय का सुन्दर से सुन्दर उपयोग कर लेना, साधक आत्माओं का लक्ष्य होता है. समय का सुन्दर उपयोग साधना के द्वारा किया जाना, यही अपने अन्दर बुद्धिमानी मानी गई है. परन्तु समय का अगर दुरुपयोग किया गया, वह अपने लिए अपराध है.
ज्ञानियों ने कहा- यदि समय का सुन्दर उपयोग नहीं किया गया तो वही वर्तमान भविष्य के अन्दर इतना भयंकर समय ला करके उपस्थित करेगा कि उससे बचना आपके लिए मुश्किल हो जाएगा. यदि कहा जाए आत्म साधना के अन्दर विचारों को केन्द्रित करने का, साधनों के अन्दर लक्ष्य को उपस्थित करने का, स्व के अन्दर स्थिरता को प्राप्त करने का तो व्यक्ति तरन्त कहेगा, क्या करें महाराज, समय नहीं है, बहुत कुछ है. समय का घोर दुरुपयोग किया जा रहा है. परन्तु परमात्मा के लिए, जिसकी कृपा से समय मिला, साधन मिला, सारी जगत की सामग्री मिली, समय नहीं है. आज का व्यक्ति इतना निर्लज्ज बन चुका है कि इस परम कृपालु परमात्मा के लिए उसके पास समय नहीं. जगत के लिए समय है. मौज, शौक करने के लिए उसके पास समय है. परनिन्दा में नष्ट करने के लिए उसके पास बहुत समय है. परन्तु स्वयं के लिए, आत्म कल्याण के लिए, स्वयं को जानने के लिए, साधना के द्वारा स्वयं का शुद्धिकरण करने के लिए उसके पास समय का अभाव है. याद रखिए, समय का दुरुपयोग किया गया तो भविष्य के अन्दर समय का दुष्काल आपको मिलेगा.
भविष्य में आनेवाला समय आपके अनुकूल नहीं होगा, आपके हमेशा प्रतिकूल होगा. इसीलिए जो कुछ मिला है उसका सदुपयोग करने का प्रयास करें. इन आधारों के द्वारा समय को किस प्रकार से उपयोग में लिया जाए. समय का लाभ कैसे उठाया जाए. समय के अन्दर साधना के द्वारा पुण्य का लाभ कैसे लिया जाए. वह रास्ता इन आचारों के द्वारा बतलाया गया है. यह विवेक अपने को अन्दर में रखना है. प्रतिक्षण हमारा समय जा रहा है. हमें मालूम नहीं. गतिमय संसार के अन्दर जीवन का हर कदम हमारी मृत्यु की तरफ बढ़ रहा है. एक-एक श्वांस में मृत्यु के समीप हम पहुंच रहे हैं. मोह निन्दा के
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