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-गुरुवाणी
लोकापवादः लोक इच्छा के विरुद्ध कोई ऐसा कार्य नहीं करना, जिससे अपनी शान्ति भंग हो जाए. लोक व्यवहार के अन्दर हम किसी की आलोचना के लक्ष्य बनें. किसी व्यक्ति की आलोचना श्रवण के बाद अपनी शान्ति नष्ट हो जाती है. मन में एक प्रकार से उद्वेग होता है. मन के अन्दर रही अशान्ति आपकी साधना में बाधक बनती है. इसीलिए यहां प्रथमाचार का परिचय दिया. किसी भी प्रकार से लोक व्यवहार विरुद्ध कार्य नहीं करना जो अपनी शान्ति नष्ट करने वाला हो.
"दीनानुद्धरणाग्रहः" दीन दुखी आत्माओं की सतत सेवा करनी, मंगल भावना के द्वारा उन आत्माओं का रक्षण करना, उनके उद्धार की मनोकामना रखना यह अपना सम्यक आचरण है. इस पर भी अपने गुरुजन बहुत कुछ विचार करके गए हैं. यह हमारी स्मृति में विद्यमान रहे. इसीलिए मैं आपको संक्षिप्त में फिर से समझा रहा हूं. ताकि विचार अपनी स्मृति में स्मारक बन जाएं. वे हमेशा के लिए मुझे प्रकट देने वाले बनें
__ "कृतज्ञता क्षुदाक्ष्यवम्" किए हुए उपकार का हमेशा अपने मन में कृतज्ञ भाव होना चाहिए. उपकारी आत्माओं के उपकार का हमेशा पुण्य स्मरण करना चाहिए, ताकि अपने अन्तर में भी वे भाव जागृत हों. परोपकार की भावना को जन्म देने वाले बनें. हमेशा व्यक्ति को कृतज्ञः बनना चाहिए, दाक्षिण्यता अन्दर में आनी चाहिए. दाक्षिण्यता का मतलब है कि कोमलता आनी चाहिए. हृदय संवेदनशील होना चाहिए, सेन्सेटिव होना चाहिए, किसी भी दुखी आत्मा को देख करके अपना हृदय द्रवित हो जाए, अपने हृदय की कोमलता जागृत हो जाए. मैं कैसे उस आत्मा का दुख दर्द दूर करने वाला बनूं. मेरा कौन सा सम्यक प्रयास उस आत्मा को शान्ति देने वाला बने, इस मंगल भावना को दाक्षिण्यता कहा जाता है. यह हमेशा अपने अन्दर रहनी चाहिए.
हृदय की कोमलता धर्म बीज को अंकरित करती है, प्रस्फटित करती है. भविष्य के अन्दर का जो बीज वपन किया गया वह धर्म का फल देने वाला, मोक्ष देने वाला, वासना मुक्त करने वाला बनता है.
सदाचारः प्रकृतितः सारे विषयों को सदाचार के अन्तर्गत यहां पर लिया गया है.
"सर्वत्र निन्दा संत्यागोऽवर्णवादश्च साधुषु" इसी सूत्र पर अपना गत दो तीन दिन से चिन्तन चल रहा है. किसी प्रकार इस भयंकर अपराध से आत्मा का रक्षण किया जाए. नैतिक दृष्टि से यह भयंकर से भयंकर अपराध है. किसी व्यक्ति के विषय में बोलने का कोई नैतिक अधिकार आपको नहीं मिला है. किसी व्यक्ति को देखने का यह तरीका बड़ा गलत है. अपने स्वयं का ही निरीक्षण करना है.
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