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गुरुवाणी
दनिया परमात्मा की है. हर आत्मा में परमात्मा विद्यमान है. मैं किसका अपमान करूं, मैं किसका नाश करूं. व्यक्ति का नाश नहीं, मेरे स्वयं का नाश है. यह दृष्टि हमारे अन्दर आनी चाहिए.
“आत्मवत् सर्वभूतेषु" सारे जगत के अन्दर जितनी भी आत्मायें हैं. वह सब आत्मायें मेरे आत्म तुल्य हैं.
“वसुधैव कुटुम्बकम्" यह सारा जगत मेरा कुटुम्ब हैं, परिवार है, उसके साथ परिवार जैसा ही व्यवहार अपने को करना है. मुझे उस शब्द से जरा प्रयोजन नहीं, उस कार्य से प्रयोजन नहीं, जो अपने मतलब के लिए निर्माण किये गये. धर्म कोई ऐसा लंगड़ा नहीं, पंगु नहीं, इतना कमजोर नहीं है. वह पूर्ण है. सबल है. वह जगत की हर आत्मा को रक्षण देने में समर्थ है परन्तु वह वहीं पर रहेगा जहां शुद्ध हृदय हो, जहां प्रेम और मैत्री का वातावरण हो, वहीं धर्म का निवास होता है. अन्यत्र धर्म कहीं नहीं मिलेगा
भगवान तो चले गये मन्दिर से, आपके व्यवहार को देखकर, प्राण नहीं रहा ऐसी गन्दी जगह पर कोई व्यक्ति रहने को तैयार नहीं तो भगवान कहां रहेंगे. जहां पवित्रतता ही न हो. जहां प्रेम का अभाव हो वहां परमात्मा का भी अभाव मिलेगा. यहाँ तो प्रेम के माध्यम से ही परमात्मा का आगमन होता है.
प्रेम गली अति सांकरी या में दो न समायं, कबीर दास ने कहा कि यह तो प्रेम की गली है. यह ऐसी गली है जिसमें मात्र आप या केवल परमात्मा को ही लेकर जा सकते हैं. आपके साथ आपका संसार नहीं चलेगा. आपके सांसारिक विचार को वहाँ प्रवेश नहीं मिलेगा. अन्य विचार से शून्य होकर मात्र प्रेम से परिपूर्ण होकर ही परमात्मा के द्वार तक जा सकते हैं. अपने विचार को छोड़ देना पड़ेगा. अपने स्वयं के विचार का यहां कोई मूल्य नहीं है. आध्यात्मिक साधना के अन्दर प्रवेश करने से पूर्व इस धार्मिक वस्तु का प्राथमिक परिचय आपको प्राप्त करना पड़ेगा. जीवन व्यवहार आपको सुन्दर बनाना पड़ेगा. उसके बाद आपको अन्दर प्रवेश मिलेगा.
प्रवेश भी तभी मिलता है जब समर्पण का भाव हो, अगरबत्ती सुगन्ध देती है. अगरबत्ती को देखिये, उससे सीखिये, वह जलकर भी जलाने वाले को सुगन्ध देती हैं. दीपक प्रकाश देता हैं. आपको मार्ग दर्शन देता है. आत्मा में ज्ञान के प्रकाश को प्रचारित करने की प्रेरणा देता है, जलकर भी प्रकाश देता है. हम क्या देते हैं? गाय घास खाकर के आपको दूध देती है. इन्सान क्या देता है? वृक्ष आपको छाया देता है, फल देता है, लकड़ी देता है. वह अपना सब कुछ सर्वस्व अपना अर्पण करता है. इन्सान क्या देता है? मरने पर भी
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