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गुरुवाणी
"मैं" की दीवार को नहीं तोड़ेंगे. शून्य का द्वार नहीं बनायेंगे. तब तक यह अहंकार आपकी धर्म साधना में ऐसा कैंसर पैदा करेगा. जिससे सारी धर्म साधना आपके लिए समाप्त हो जायेगी. कभी सक्रिय नहीं बनेगी. कभी आशीर्वाद नहीं बनेगी. धर्म के इस रहस्य को समझे बिना, यदि हम धर्म का परिचय दें, परिचय पूर्ण नहीं बनेगा.
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इसीलिए मैंने कहा- गर्व रहितम्. हमारे शब्द गर्व से रहित होने चाहिये. नम्रता की भूमिका पर शब्द का सृजन होना चाहिये, तब शब्द में सुन्दरता मिलेगी, उन शब्दों में संयम का सुगन्ध आपको मिलेगा. यहां तक यह सारा परिचय अभी तो अपूर्ण है. अभी वह इससे आगे बड़ा सुन्दर विषय लिया जायेगा. यह सूत्र पूरा होते ही आपके जीवन व्यवहार का और तरीके से परिचय दिया जायेगा.
“असद्व्ययपरित्यागो, स्थाने चैव क्रिया सदा”,
जीवन के अन्दर समस्याएं कहां से पैदा होती हैं ? आचार्य भगवन्त जीवन के अन्दर समस्याऐं कहां से पैदा हुईं ? आचार्य भगवन्त का निर्णय कितना सुन्दर है. असद्व्यय. हमारा पैसा जो व्यय बेकार या फिजूल किया जा रहा है. यह अनीति और अन्याय को जन्म देता है. क्योंकि साइड इनकम निकलवाने का रास्ता निकालना ही पड़ता है. सद्व्यय नहीं करेंगे. बिना प्रयोजन शौक, मौज के लिए आप पैसे का दुरुपयोग करेंगे. रास्ता भी फिर गलत होगा उपार्जन का. आपको असत्य का आसरा लेना पड़ेगा. इन बातों पर भी विचार करेंगे. परन्तु धार्मिकता का अपना जो चिन्तन बन गया है. यह ऐसा खतरनाक वायरस है, जिससे कोई भी धर्म बाकी नहीं बचा. हर धर्म के अन्दर इसने विकृति पैदा कर दी है. इस कारण हमारी शान्ति गई, हमारी पवितत्रता गई.
हिन्दू संस्कृति की एकता नष्ट हुई, विचार के मत भेद कायम हुए. महावीर का अनेकान्त जिस की हमने हत्या कर दी, महावीर का अनेकान्त सारे धर्म को एक करने वाला था, राष्ट्रीय एक रूपता पैदा करने वाला था, हमने मिलकर इस अनेकान्त की ही हत्या कर दी, उसी का नग्न स्वरूप इस वर्तमान में है. बेचारे साधु सन्त क्या करें. वे अन्त हृदय के रुदन द्वारा अपने दर्द को प्रकट करते हैं. परन्तु जगत में सुनने वाला कोई भी नहीं रहा, यह आज हमारी दशा है.
दुनिया के हर धर्म में अन्तर, भेद रेखा आ गई. दीवार बन गई, दरवाजे बन्द हो गये. कहाँ से आप प्रभु के पास जायेंगे ? भगवान की वाणी के साथ भी हम खिलवाड़ करने लग गये. मन पसन्द अर्थ करने लग गये. याद रखिये परमात्मा के शब्दों को जिनके साथ हम वकालत करने लग गए हैं. याद रखिए परमात्मा को अपनी कमजोरी को छिपाने का एक रास्ता हमने ढूंढ लिया. इसी का यह परिणाम है कि लोग धर्म से विमुख बन जा रहे हैं. लोगों को घृणा हो गई, ऐसे धर्म से क्या मतलब उस धर्म का, जो इन्सान से नफरत करता हो, प्राणियों में जहां प्रेम का अभाव हो, जहां इतनी संकीर्णता हो. सारी
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